आइये जानते है क्या है सीता नवमी की पौराणिक कथा। ….
1 min readहिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता की जयंती मनाई जाती है. इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है. सीता माता की जयंती इस बार 21 मई यानी आज मनाई जा रही है. देश के हर कोने में सुहागिन महिलायें सीता नवमी का व्रत रख रही हैं.
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था. मान्यता है कि महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे.
इसी दौरान सोने की टोकरी में एक कन्या मिली जिसे राजा जनक ने गोद ले लिया. चूंकि यह कन्या हल चलते हुए मिली थी और हल के नोक को सीता कहा जाता है, इसलिए इस कन्या का का नाम सीता रखा गया. गोद लेने के कारण यह राजा जनक की बेटी हुई इस लिए इसे सीता जी को जानकी भी कहा गया.
जानकी नवमी तिथि : 21 मई, शुक्रवार
शुभ तिथि शुरू : दोपहर 12:25 बजे, 20 मई
शुभ तिथि समाप्त : 11:10 पूर्वाह्न, 21 मई
सीता नवमी का व्रत रखने से मिलता है सभी तीर्थों का फल
माता सीता को त्याग, पतिव्रता और समर्पण की मूर्ति कहा जाता है. हिंदू धर्म में इनका अतुलनीय अस्थान है. इन्हें लक्ष्मी का स्वरूप कहा जाता है. माता सीता की कृपा पाने के लिए सीता नवमी के दिन व्रत रखकर श्री सीतायै नमः का जाप करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पति की उम्र लंबी होती है एवं जानकी स्तोत्र, रामचरित मानस का पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
सीता नवमी के दिन सुबह उठकर स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें. उसके बाद पूजा स्थल पर बैठकर भगवान श्रीराम और माता सीता की मूर्ति स्थापित करके गंगाजल से स्नान कराएं.
अब माता सीता को पीले फूल, कपड़े और शृंगार की सामग्री एवं दूध और गुड़ से बने प्रसाद अर्पित करें. दिन भर व्रत रखें और शाम को इसी प्रसाद को खाकर व्रत खोलें. इस व्रत से विवाहित महिलाओं के पति को लंबी उम्र प्राप्त होती है और जिन बालिकयों का विवाह न हो रहा हो उनके विवाह में आ रही अड़चने दूर हो जाती है.
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान श्रीराम-माता सीता का विधि-विधान से पूजन करने से पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल प्राप्त होता है.