February 14, 2025

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यूपी पोस्टर में SC ने UP सरकार से पूछे कुछ सवाल। ….

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उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लखनऊ में लगाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से दलील दी कि निजता के अधिकार के कई आयाम हैं। कोर्ट ने कहा है कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है और यूपी सरकार से पूछा है कि क्या उसके पास इस तरह के पोस्टर लगाने की पावर है। कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि अब तक, ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी कार्रवाई को वापस कर सके तुषार मेहता ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाने वाला और हिंसा में कथित रूप से शामिल होने वाला, निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।

वहीं इस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वह 72 बैच के आईपीएस अधिकारी है और वह आईजी की पोस्ट से रिटायर हुए हैं। उन्होंने बलात्कारियों और हत्यारों के मामलों का उदाहरण देते हुए कहा कि हम कब से और कैसे इस देश में नेम और शेम की नीति रखी है? यदि इस तरह की नीति मौजूद है तो सड़कों पर चलने वाले व्यक्ति की लिंचिंग हो सकी है

आपको बता दें कि इलाहाबाद के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च तक होर्डिंस हटवाएं। साथ ही इसकी जानकारी रजिस्ट्रार को दें। हाईकोर्ट ने दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया है। लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए 57 कथित प्रदर्शनकारियों के 100 पोस्टर लगाए गए हैं।

लेकिन जहां अधिकारियों की लापरवाही से मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, अदालत किसी के आने का इंतजार नहीं कर सकती। निजता के अधिकार के हनन पर अदालत का हस्तक्षेप करने का अधिकार है। साथ ही प्रदेश सरकार से 16 मार्च तक पोस्टर हटाने के संबंध में की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे।

इस आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने उच्चस्तरीय मंथन किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के सभी पहलुओं पर मंथन और विधिक राय के लिए लखनऊ के लोकभवन में उच्चस्तरीय बैठक हुई। तमाम तकनीकी पहलुओं पर मंथन के बाद तय किया गया कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जाएगी।

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