September 25, 2024

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बाबरी विध्वंस केस: 28 वर्षों तक चली सुनवाई| आइये जानिए अब तक क्या-क्या हुआ:

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सीबीआई ने इस केस में कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया था|

babri demolition case verdict | बाबरी ढांचा विध्वंस मामला: बरी हुए ये सभी  आरोपी, देखें इनकी PHOTOS | Hindi News,

लखनऊ: बाबरी ढांचे के विध्वंस के 28 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया| कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है| कोर्ट ने कहा कि सीबीआई सबूत जुटाने में नाकाम रही है| जज एसके यादव ने कहा मजबूत साक्ष्य नहीं हैं| नेताओं ने भीड़ को रोकने की कोशिश की उन्होंने कहा कि घटना पूर्वनियोजित नहीं थी|

babri masjid demolition judgment all you need to know about the caseबाबरी  मस्जिद विध्वंस केस में आज फैसला, जानें- 28 साल में कब क्या हुआ - babri  masjid demolition

28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया था| इस केस में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी| मुरली मनोहर जोशी| उमा भारती समेत कई अन्य नेता के आऱोप थे. सीबीआई ने इस केस में कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया था| जिनमें एक बाला साहब ठाकरे अशोक सिंहल सहित 17 आरोपी अब इस दुनिया में नहीं हैं|

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28 वर्ष चले इस केस में 351 गवाहियां हुईं, सीबीआई ने 25 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी| केंद्र ने बाबरी विध्वंस के 10 दिन बाद यानी की 16 दिसंबर 1992 को ​लिब्राहन आयोग का गठन कर जांच का जिम्मा सौंपा दिया गया आयोग को 3 महीने में जांच रिपोर्ट सौंपनी थी| लेकिन 17 साल लगे. ​बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई पूरी हो गई लेकिन लिब्राहन आयोग की जांच रिपोर्ट का कहीं जिक्र तक नहीं आया था| अयोध्या में पूरी ज़मीन हिंदू पक्ष को देने पर लिब्रहान आयोग के वकील ने उठाए  सवाल - BBC News हिंदी

28 वर्ष पहले बाबरी केस में 10 मिनट के अंदर दो FIR दर्ज हुईं थी इस मामले में पहली एफआईआर (संख्या 197/92) प्रियवदन नाथ शुक्ल ने 6 दिसंबर 1992 की शाम 5:15 बजे अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 395, 397, 332, 337, 338, 295, 297 और 153ए के तहत दर्ज कराई गई थी| इसके 10 मिनट बाद ही दूसरी एफआईआर (संख्या 198/92) रामजन्मभूमि थाने के इंचार्ज गंगा प्रसाद तिवारी की तरफ से आठ नामजद लोगों के खिलाफ दर्ज कराया गया जिसमें लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी उमा भारती विनय कटियार अशोक सिंघल साध्वी ऋतंभरा विष्णु हरि डालमिया और गिरिराज किशोर को आरोपी बनाया गया है की इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 505 के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी जनवरी 1993 में 47 अन्य मुकदमे दर्ज कराए गए थे जिनमें पत्रकारों से मारपीट और लूटपाट जैसे आरोप लायगे गए थे|

सीबीआई के संयुक्त चार्जशीट को आडवाणी ने दी कोर्ट में चुनौती है बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई के लिए 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ में विशेष अदालत बनाई गई थी जिसमें मुकदमा संख्या 197/92 की सुनवाई होनी थी| इस केस में हाई कोर्ट की सलाह पर 120बी की धारा जोड़ी गई मूल एफआईआर में यह धारा नहीं थी सीबीआई ने अक्टूबर 1993 में पहली के साथ ही दूसरी एफआईआर को और जोड़कर संयुक्त चार्जशीट फाइल की

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चार्जशीट में बाला साहब ठाकरे नृत्य गोपाल दास कल्याण सिंह चम्पत राय समेत कुल 49 नाम शामिल थे सीबीआई द्वारा दोनों एफआईआर में संयुक्त चार्जशीट फाइल करने के फैसले को लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य आरोपियों ने इलाहाबाद के हाईकोर्ट में चुनौती दी थीं| इनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिया था कि वह एफआईआर संख्या 198/92 में चार्जशीट रायबरेली कोर्ट में फाइल करे

सीबीआई ने 2003 में 2500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की, लेकिन आपराधिक साजिश की धारा 120 बी नहीं जोड़ सकी. रायबरेली कोर्ट ने दूसरी एफआईआर में आरोपी बनाए गए आठ लोगों को सबूत के आभाव में बरी कर दिया इस फैसले के खिलाफ दूसरा पक्ष हाई कोर्ट चला गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में रायबरेली कोर्ट का आठ आरोपियों को बरी करने का फैसला रद्द करते हुए आदेश दिया कि इनके खिलाफ मुकदमा चलता रहेगा. इसके बाद केस में ट्रायल शुरू हुआ और 2007 में पहली गवाही हुई. कुल 994 गवाहों की लिस्ट थी, जिनमें 351 की गवाही हुई. पहली एफआईआर (संख्या 197/92) में 294 गवाहियां हुईं, वहीं दूसरी एफआईआर यानी (संख्या 198/92) में 57 लोगों ने गवाही दी|

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के दोनों एफआईआर में अलग-अलग कोर्ट में सुनवाई के फैसले को सीबीआई ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सीबीआई ने अपनी याचिका में सर्वोच्च अदालत से मांग की कि दोनों एफआईआर में संयुक्त रूप से लखनऊ में बनी विशेष अदालत में ट्रायल हो और आपराधिक साजिश की धारा जोड़ने की अनु​मति मिले. करीब 6 वर्षों तक सीबीआई की इस याचिका पर सुनवाई चलती रही. सुप्रीम कोर्ट ने जून 2017 में सीबीआई के पक्ष में फैसला सुनाते हुए दोनों मुकदमों में ट्रायल स्पेशल सीबीआई कोर्ट लखनऊ में कराने और आपराधिक साजिश की धारा बढ़ाने की अनुमति दे दी साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई 2 वर्षों के अंदर पूरी करने का आदेश दिया. अप्रैल 2019 में वह समय सीमा खत्म हो गई, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई अदालत को फिर से नौ महीने का वक्त दिया. 31 अगस्त तक फैसला आना था

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