September 25, 2024

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बापू गांधी जयन्तीम हात्‍मा गांधी के पास थे महामारी से निपटने के मंत्र आइये जानिए कोरोना से कैसे लड़ते है:

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 महामारी के इस दौर में महात्मा होते तो क्या होता, यह सवाल दिलचस्प है और इसे खंगालने की स्वाभाविक जिज्ञासा मन में उठती है। क्या 1918 की वैश्विक महामारी स्पैनिश फ्लू से गांधी जी भी संक्रमित हुए थे? यह सवाल हाल ही में चर्चा में था। इसकी वजह यह है कि गांधी जी उसी साल गंभीर रूप से बीमार हुए थे। महात्मा गांधी के पौत्र गोपाल कृष्ण गांधी के मुताबिक यह सच है कि गांधी जी 1918 में मरणासन्न हो गए थे, पर उन्हें ‘स्पैनिश फ्लू’ नहीं हुआ था। उन दिनों वह गुजरात के खेड़ा जिले में अपने नए मित्र वल्लभ भाई पटेल के साथ थे।

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गांधी जी को पेट से संबंधित खतरनाक संक्रमण हुआ था और उन्हें लगा कि उनकी मौत बहुत करीब है। उन्होंने अपने बेटे हरिलाल को अपने पास साबरमती में बुला लिया। वहीं गांधी जी के पौत्र और हरिलाल के पुत्र का देहांत हो गया। हरिलाल की पत्नी भी महामारी का शिकार हो गईं। इन दोनों की मृत्यु स्पैनिश फ्लू के कारण ही हुई। इस तरह उस महामारी ने महात्मा गांधी का बहुत बड़ा पारिवारिक नुकसान किया।

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1904 में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में थे और वहां के स्थानीय भारतीयों के बीच ब्यूबोनिक प्लेग की महामारी फैल गई थी गांधीजी ने अपने जीवन की परवाह के बिना ही इस संक्रामक की बीमारी में लोगों की मदद की थी इसी बीमारी के चलते चलते साथ में काम करने वाली एक नर्स भी संक्रमित हो गई और आखिरकार उसने अपनी जान भी गंवा दी संक्रमण के विरुद्ध लड़ते हुए गांधीजी ने स्थानीय म्युनिसिपैलिटी के साथ पूरा सहयोग किया था पर अपना काम ठीक से न करने के लिए म्युनिसिपैलिटी को आड़े हाथों भी लिया उन्होंने प्रेस के लिए एक लंबा पत्र लिखा था जिसमें से उन्होंने म्युनिसिपैलिटी को लापरवाही दिखाने और प्लेग फैलाने के लिए भी जिम्मेदार ठहराया था|

स्वयं प्रकाश | HASTAKSHEP

गांधी जी आज के समय में क्या करते इसके बारे में फिलहाल तो हम कुछ ईमानदार अटकलें ही लगा सकते हैं पर सेहत, आहार वगैरह के बारे में उनके विचारों के आधार पर एक सामान्य समझ पर पहुंचा जा सकता है। जैसा कि बापू शारीरिक सफाई पर बहुत ध्यान देते थे। दरअसल, वे दैहिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि को ईश्वर की सेवा का पर्याय मानते थे। वे किसी बीमारी के लिए आधुनिक और परंपरागत दोनों तरीकों का गंभीरता से अध्ययन करते थे। उन पर पर्याप्त चिंतन-मनन करने के बाद ही उसे अपने विवेक के आधार पर अपनाते या ठुकराते थे। जाहिर है आज के समय में वह व्यक्तिगत स्तर पर और साथ ही देश के गांवों एवं शहरों में साफ-सफाई बनाए रखने पर पूरा जोर लगा देते।

महामारी के दौरान बापू लोगों को निडर होने की सलाह देते और महामारी को लेकर हौवा खड़ा करने वाले लोगों के साथ सख्ती से पेश आते। दरअसल, रोगियों की सेवा गांधी जी की सहज प्रवृत्ति थी। कुष्ठरोग के शिकार विद्वान परचुरे शास्त्री को अपनी कुटिया के करीब रखकर उन्होंने स्वयं उनकी सेवा की थी। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों को अपने घर पर बुलाकर भी उनकी मरहम पट्टी की थी। आज बापू होते तो जरूर कोरोना पीडि़तों की देखभाल करते, उनका मनोबल बढ़ाते, उन्हें मायूस न होने की सलाह देते, पर ऐसा करते हुए स्वच्छता रखने, हाथ धोने, मास्क लगाने जैसे सभी वैज्ञानिक निर्देशों का पूरे अनुशासन के साथ पालन भी करते।

स्वयं प्रकाश | HASTAKSHEP

कोरोना संकट के समय में गांधी जी एक बार आत्मचिंतन करने और प्रकृति के साथ मानव के बिगड़ते रिश्ते की वजहों को समझाते, इस संबंध में वे लगातार लिखते रहते
अपनी आवश्यकताओं और कामनाओं के बीच के फर्क को एक बार गौर से निहारने की सलाह देते और प्रकृति के लगातार शोषण के विरोध में तो अवश्य ही सत्याग्रह करते। समूची मानव चेतना में इसके प्रति जागरूकता फैलाते। धरती पर हमारी जरूरत के लिए सब कुछ उपलब्ध है, पर लोभ के लिए कुछ भी पर्याप्त नहीं, बापू अपनी ही इस कीमती बात को बार-बार दोहराते
सिर्फ देह के अलावा मन, बुद्धि और आत्मा के स्वस्थ रहने की आवश्यकता पर जोर देते। लालच पर नियंत्रण रखने की सलाह देते
बापू ऐसे कठिन समय में लोगों को प्रार्थना का महत्व भी समझाते। अंतर्मुखी होने और सच्ची विनम्रता के साथ अज्ञात और अज्ञेय की शरण में जाने की सलाह भी देते। गांधी जी आज के समय में अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को जगाने की आवश्यकता पर जोर देते। इसे ही गांधी जी शरणागति कहते थे, जब इंसान इस विराट सृष्टि के समक्ष अपने अहंकार, मन और अपने प्रयासों की क्षुद्रता को देखकर उसे स्वीकार कर लेता है|

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स्वतंत्र भारत के लिए सही चिकित्सा पद्धति तथा स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, इस विषय पर गांधीजी 1946 में पुणे के उरली कांचन गांव में रहते हुए चिंतन करने लगे थे। डॉक्टर और दवाइयों पर पूरी तरह निर्भर न रहकर लोगों को आत्मनिर्भर बनाने एवं स्वास्थ्य उपलब्ध कराने वाली सस्ती, सरल और सहज पद्धति की तलाश में वे हमेशा रहते थे। आज भी वह संभवत: ऐसी ही किसी पद्धति का प्रयोग करते। शरीर की नैसर्गिक रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी पर गांधीजी पूरा भरोसा रखते थे। इसे ही वह प्राकृतिक चिकित्सा कहते थे। स्वास्थ्य की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए लगातार सरकारों पर दबाव डालते और जरूरत पडऩे पर इसके लिए लंबी पदयात्रा पर निकल पड़ते या अनशन पर बैठ जाते।

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दलाई लामा ने बताया कि गांधी जी एक महान इंसान थे, जिनको मानव मन की गहरी समझ थी। मैं जब छोटा बच्चा था, तभी से गांधी जी ने मुङो प्रेरणा दी है। उन्होंने दुनिया का परिचय अहिंसा से करवाया। अहिंसा का अर्थ हिंसा की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि यह बहुत सकारात्मक चीज है, क्योंकि इसी पर सत्य की शक्ति निर्भर करती है।

 

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