बोर्ड के सचिव जफरयाब जीलानी और व मौलाना उमरैन महफूज रहमानी ने बैठक के बाद दावा किया कि दोनों फैसले आम राय से हुए और 30 दिन में याचिका दाखिल कर दी जाएगी। बोर्ड ने याचिका के लिए ये आधार गिनाए:-
आधार नंबर एक: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मस्जिद निर्माण कराया था।
आधार नंबर दो: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि1857 से 1949 तक मस्जिद और अंदरूनी हिस्सों पर मुस्लिमों का कब्जा था।
आधार नंबर तीन: बोर्ड के अनुसार, कोर्ट ने यह भी माना कि बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 16 दिसंबर, 1949 को पढ़ी गई थी।
आधार नंबर चार: बोर्ड ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात मूर्तियां रखी गईं। उनकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई लिहाजा देवता नहीं माना जा सकता।
आधार नंबर पांच: गुंबद के नीचे रामजन्मभूमि पर पूजा की बात नहीं कही गई, फिर जमीन रामलला विराजमान के पक्ष में क्यों दी गई।
आधार नंबर छह: कोर्ट ने रामजन्मभूमि को पक्षकार नहीं माना, फिर उसके आधार पर फैसला क्यों दिया?
आधार नंबर सात: कोर्ट ने कहा, मस्जिद ढहाना गलत था। इसके बावजूद मंदिर के लिए फैसला क्यों दिया?
आधार नंबर आठ: कोर्ट ने कहा, हिंदू सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं, इसलिए जमीन रामलला को दी जाती है, जबकि मुस्लिम भी इबादत करते रहे हैं।
आधार नंबर नौ: वक्फ एक्ट की अनदेखी की गई, जिसके मुताबिक मस्जिद की जमीन बदली नहीं जा सकती।
आधार नंबर दस: कोर्ट ने यह माना कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण नहीं हुआ था।