December 27, 2024

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आज सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव आपकी सभी मनोकामनाएं करते है पूर्ण

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प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और साथ ही व्रत उपवास करने का भी विधान है.

धार्मिक मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने और व्रत रखने से जातकों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन भगवान शंकर को बेल पत्र, धतूरा, बेर अर्पित किए जाते हैं. इस दिन रूद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी किया जाता है. इस मंत्र के जाप से कई कष्टों का निवारण होता है.

ओम् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।।

इस मंत्र के उच्चारण में तनिक भी दोष स्वीकार नहीं किया जाता है. इसे अतिविनय भाव से आदर की मुद्रा में ही पढ़ा जाना चाहिए. इससे मृत्यु संकट तक टल जाता है. इस मंत्र पर विभिन्न वैज्ञानिक शोध जारी हैं.

दैहिक व्याधियों में यह मंत्र प्रभावी होने के साथ अन्य भौतिक और दैविक संताप में भी यह अत्यंत असरदार है. कहते हैं कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के नकारात्मक प्रभाव महामृत्यंजय मंत्र के जाप से दूर हो जाते हैं. विशेष अनुष्ठान में इसका जाप सवा लाख बार किया जाता है. उसका दसांश हवन कराया जाता है. इसमें 11 साधकों को सहयोग लिया जाता है.

अकेले भी इसे पूरा किया जा सकता है. इस के लिए नित्य प्रति एक निश्चित संख्या में जप करना अनिवार्य होता है. इस जाप और हवन से इच्छित परिणाम की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि सामान्य नित्य पूजा में इस मंत्र को शामिल करने से आपदाएं व्यक्ति से दूर रहती हैं.

ऐसा कहा जाता है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप स्वास्थ्य लाभ के लिए फायदेमंद रहता है. सुबह पूजा के समय अगर इस मंत्र का जाप किया जाता है तो कई प्रकार के कष्टों का निवारण होता है.

शिव जी की आराधना महामृत्युंजय मंत्र के बिना अपूर्ण है. महाशिवरात्रि पर महामृत्युंजय मंत्र के पारायण व पुरश्चरण विशेष लाभ प्राप्त होता है. आइए जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण कैसे किया जाता है-

महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण पांच प्रकार का होता है-
जाप
हवन
तर्पण
मार्जन
ब्राह्मण भोज

पुरश्चरण में जप संख्या निर्धारित मंत्र की अक्षरों की संख्या पर निर्भर करती है. इसमें “ॐ” और “नम:” को नहीं गिना जाता. जप संख्या निश्चित होने के उपरान्त जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराने से ही पुरश्चरण पूर्ण होता है.

-पारायण हेतु निम्न महामृत्युंजय मंत्र का यथाशक्ति जाप करें

“ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धानात्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् भूर्भुव: स्व: ॐ स: जूं हौं ॐ”

-सर्वत्र रक्षा करने के लिए निम्न महामृत्युंजय मंत्र का यथाशक्ति जाप करें

“ॐ जूं स: (अमुकं) पालय पालय स: जूं ॐ”

(यदि यजमान व अन्य किसी की रक्षा के लिए मंत्र जाप करें तो “अमुक” के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लें. यदि स्वयं की रक्षा के लिए मंत्र जाप कर रहे हैं तो “अमुक” के स्थान पर “मम्” कहें।)

-रोग से मुक्ति के लिए निम्न महामृत्युंजय मंत्र का यथाशक्ति जाप करें

“ॐ जूं स: (रोग का नाम) नाशय नाशय स: जूं ॐ”

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