September 26, 2024

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UNSC में भारत की स्‍थायी दावेदारी पर रोड़े अटकाते रहे हैं कुछ देश, बिना सुधार के इसका कोई मतलब नहीं:

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किसी भी देश के मुकाबले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की भारत की योग्यता सर्वाधिक है, लेकिन दुनिया के जिन देशों को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य होने के नाते वीटो पावर हासिल है, उनमें से एक-दो देश हमेशा भारत की ऐसी तमाम दावेदारी को नकार देते हैं। इस विश्व व्यवस्था में शक्ति संतुलन का यह एक ऐसा नाजुक पहलू है, जिसके चलते पिछले कई दशकों से बार-बार सुधार की जरूरत पर जोर देने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में सुधार संभव नहीं हो रहा।

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अकेले में भारत को स्थायी सदस्य बनाए जाने की न सिर्फ अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस तक तरफदारी करते हैं, बल्कि यह भी कहते हैं कि आज की तारीख में भारत दुनिया की आवाज है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र की स्थायी आवाज में उसकी आवाज शामिल होनी चाहिए, लेकिन जब निर्णायक घड़ी आती है, तब भारत के खिलाफ या तो चीन अड़ंगा लगा देता है या फिर कोई सैद्धांतिक बहाना बनाकर सुरक्षा परिषद के बाकी स्थायी सदस्य भी गोल-मोल बातें करने लगते हैं। यह खेल कब तक जारी रहेगा

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कभी न कभी तो इस विश्व संस्था के ताकतवर सदस्यों को निर्णय लेना ही पड़ेगा। सिर्फ भारत ही नहीं, जापान, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील की भी बड़ी वाजिब दावेदारियां हैं। इनको पूरा किए बिना विश्व में शक्ति का संतुलन निर्धारित करना संभव ही नहीं है।भारत, जापान और ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका सुरक्षा परिषद के मौजूदा स्थायी सदस्यों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं। भारत की उपलब्धियां तो कई स्थायी सदस्यों देशों के मुकाबले कहीं बेहतर हैं।

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भारत दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इसलिए दुनिया की अर्थव्यवस्था का इंजन है। भारत में चीन के बराबर और कुछ शोध सर्वेक्षणों के मुताबिक तो चीन से भी ज्यादा ठोस मध्यवर्गीय उपभोक्ता हैं, जिनके बिना विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की कल्पना ही नहीं की जा सकती। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इस लोकतंत्र में 60 करोड़ से ज्यादा लोगों की जीवंत भागीदारी है। कुल मिलाकर भारत सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य होने की वह तमाम शर्ते पूरी करता है, जो हो सकती हैं, लेकिन इन सबके बाद भी भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने से तिकड़मों के जरिये रोका जा रहा है। वक्त आ गया है कि इनपर लगाम लगे, पाखंड का बोलबाला कम हो और इस वैश्विक संस्था का नए सिरे से सुधार ही नहीं, बल्कि पुर्नसयोजन हो। जब तक यह नहीं होता, तब तक इस विश्वव्यापी संस्था का कोई मतलब नहीं है।

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