September 23, 2024

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जानिए क्या है विवादित ढांचा विध्वंस केस? कितनी दर्ज हुई थी एफआइआर और कितनों की हुई थी मौत:

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अयोध्या में बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि स्थल को लेकर चल रहे सालों पुराने विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला सुना चुकी है। अब कोर्ट की ओर से उस ढांचे को गिराए जाने के मामले में आरोपितों को लेकर फैसला आना बाकी है। इस खबर में हम आपको बता रहे हैं क्या था विवादित ढांचा विध्वंस केस? सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंदिर में दिया गया फैसला और उक्त स्थान पर किए गए भूमि पूजन तक की पूरी कहानी।

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अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि प्रांगण में इस विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। इसमें बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं को आरोपी बनाया गया था, जिसमें लाल कृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, जयभान सिंह पवैया समेत कई और बड़े नेता शामिल थे। सभी ने अदालती कार्रवाई का सामना किया।

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हिंदू पक्ष का दावा था कि अयोध्या में विवादित ढांचा का निर्माण मुगल शासक बाबर ने 1528 में श्रीराम जन्मभूमि पर बने रामलला के मंदिर को तोड़कर करवाया था, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई थी। वर्ष 1885 में पहली बार यह मामला अदालत में पहुंचा था। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 90 के दशक में राम रथ यात्रा निकाली और तब राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा। छह दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा तोड़ दिया और तबसे ही यह मामला कोर्ट में चल रहा है।

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27 साल बाद आ रहा फैसला

सीबीआई की अदालत 27 साल बाद इस मामले में फैसला सुनाएगी। तब इस मामले में कुल 50 एफआइआर दर्ज हुई थी। तीन जांच एजेंसियों ने मिलकर इसकी विवेचना की। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके यादव 30 सितंबर (बुधवार) को विवादित ढांचा विध्वंस मामले में फैसला सुनाएंगे। सीबीआइ ने कई चरणों में आरोपपत्र दाखिल कर अभियोजन पक्ष को साबित करने के लिए 994 गवाहों की सूची अदालत में दाखिल की।

अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस केस में पूर्व उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व राज्यपाल और यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह, भाजपा नेता विनय कटियार, पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की सीएम रहीं उमा भारती आरोपी हैं। सीबीआई ने इस मामले में 49 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी, जिसमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है। सीबीआई के वकील ललित सिंह ने बताया कि अदालत ने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद एक सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद: 1528 से आज तक

राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के मामले में विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश 1 फरवरी 1986 को दिया गया था, उससे पहले 37 सालों से यहां पर ताला लगा हुआ था। न पूजा की जा रही थी और ना ही कोई अन्य गतिविधि हो रही थी।

न्यायाधीश के आदेश देने के बमुश्किल 40 मिनट बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट फैजाबाद रामजन्मभूमि मंदिर पहुंचे और उन्होंने गेट पर लगे ताले खोल दिए। न्यायाधीश ने इस बात की भी अनुमति दी कि जनता दर्शन व पूजा के लिए रामजन्मभूमि जाए। अपने आदेश में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार अपील दायर करने वाले तथा हिंदुओं पर रामजन्म भूमि में पूजा या दर्शन में कोई बाधा और प्रतिबंध न लगाए।

अयोध्या विवाद में इसलिए बार-बार आता है, क्योंकि कहा जाता है कि इसी कमांडर ने अपने बादशाह बाबर के नाम पर यहां बाबरी मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने सन 1528-29 में इस मस्जिद का निर्माण किया था। एक समय में यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिद हुआ करती थी। विकीपीडिया के अनुसार 1940 के दशक में इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान भी कहा जाता है। इस नाम से अंदाजा लगता है कि इस भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता रहा है।

1885 से लेकर 2019 तक पढ़िए अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद का पूरा  घटनाक्रम

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए पहले ही फैसला सुना दिया है। साथ ही मस्जिद के लिए अलग जमीन देने की बात भी कह दी है। पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

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शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित करे। पीठ ने फैसले में कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार रामलला की मूर्ति को सौंप दिया जाए। फैसला आ जाने के बाद पूरे विधिविधान के साथ यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन किया है, अब मंदिर निर्माण का काम आगे बढ़ चुका है।

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