September 25, 2024

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महामारी के दौर में मास्क बगैर नहीं गुजारा :-

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किसी कक्षा में जैसे एक नया विद्यार्थी आता है, जमात में एक नया तालिब… और उस वातावरण का, उस माहौल का अभिन्न् हिस्सा बन जाता है, ठीक उसी तरह हिंदी/हिंदुस्तानी में एक नया शब्द प्रवेश कर गया है, एक नया लफ्ज दाखिल हो गया है, हमेशा-हमेशा के लिए- ‘मास्क!
भर्ती हो गई है ‘मास्क की हमारी हिंदी/हिंदुस्तानी की ‘क्लास में। सिर्फ इन दोनों में क्यों, भारत की हर भाषा में। कश्मीर से लेकर तमिल और मलयालम तक, कच्छ से लेकर पूर्वोत्तर की हर जबान तक।
कोई इसे ‘मुखौटा नहीं कहता। कोई इसे ‘नकाब के नाम से नहीं बुलाता। मास्क… सिर्फ मास्क! हो अंग्रेजी का यह शब्द, हो ‘विदेशी, लेकिन अब लाखों-करोड़ों हिंदुस्तानी इस छोटे से (क्या कहें इसको?) असबाब को मास्क के ही नाम से जानते हैं, पहचानते हैं, खरीदते हैं।
हल्का हरा-नीला सा मास्क, भारी सफेद या काले रंग का मास्क, घरेलू कपड़े से घर में ही बनाया हुआ तीन-तहों वाला मास्क, रंग-बिरंगा मास्क। सस्ता मास्क, महंगा मास्क, एक बार पहनने लायक मास्क, धो-धो कर बार-बार पहनने वाला टिकाऊ मास्क। बच्चों के लिए छोटा-नन्हा मास्क।

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मास्क…’पहने रखिए जनाब मास्क, ‘भूलिए मत…बाहर जाना हो तो मास्क जरूर पहनकर रखिए, ‘मास्क पहनिए और वायरस से बचिए।
मास्क! कहां से आया है यह शब्द? क्या है इसकी व्युत्पत्ति? कहते हैं, फ्रांसीसी से आया है यह अंग्रेजी में। फ्रांसीसी भाषा की वर्तनी में- ‘मास्क्यू। पुरातन फ्रांसीसी में मास्क का मतलब था ‘चेहरे को ढकने वाला परदा। फिर वही मास्क नौटंकियों के जरिए कुछ मजाकिया भी बन चला। कहते हैं कि अरबी लफ्ज ‘मसखरा भी मास्क से जुड़ा हुआ है।

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सराइकेला और मयूरभंज के ‘छाउ नाट्य मास्क के बिना नहीं रचाए जाते। हमारी आदिवासी जनता के नृत्य-संबंधी मास्क इंतहा खूबसूरत होते हैं।
सर्कसों में जोकर मास्क पहना करते थे। ‘मेरा नाम जोकर में राज कपूर का पहना हुआ (या पेंट किया हुआ) मास्क मशहूर है। मुकेश की आवाज में गाया हुआ ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां… भी उतना ही मशहूर। कितना हंसाया राज-जी ने उस गाने के साथ, कितना रुलाया!

माना गया है कि जैसे ही वैक्सीन रूपी उपाय तशरीफ लाएगा, वायरस अपनी तशरीफ ले जाएगा। ईश्वर करे, खुदा करे ऐसा ही हो। लेकिन कौन जाने वैक्सीन कब आएगी? और कौन कह सकता है कि वह वैक्सीन हिंदुस्तान की एक बिंदु तीन अरब लोगों तक पहुंच पाएगी, उस तमाम जन-समूह को सुकून दे पाएगी? और अगर हर हिंदुस्तानी को कोरोना का टीका लग भी जाता है, तो वह टीका किस हद तक उस आदमी को सुरक्षित, महफूज, सही सलामत रख पाएगा|

और मैं यह भी सुनता हूं कि वैक्सीन जब कोरोना की महामारी को रफा-दफा करेगी, तब भी वह पूरी तरह नहीं जाएगी। ‘एपिडेमिक न रहते हुए वह ‘एंडेमिक बन जाएगी। यानी कहीं न कहीं, इधर-उधर सिकुड़कर वास करेगी और कम-ज्यादा मात्रा में हमें परेशान करती रहेगी। यानी मास्क से जनता अब कभी भी अलग नहीं हो सकेगी। बुजुर्ग लोग तो कतई नहीं। भीड़ में बिल्कुल नहीं, मुसाफिरी में नहीं, जश्न में, खुशी-ओ-गम के मौकों में नहीं, मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर-गुरुद्वारे में नहीं, त्योहारों में नहीं, मंडियों में नहीं, मॉल्स में नहीं और जब सिनेमाघर फिर खुलेंगे, तब उनमें नहीं।
बुद्धिमानी, अक्लमंदी इसी में है कि हम यह मानकर चलें कि अब अनिश्चित-काल तक के लिए हम और हमारे मास्क जीवनसाथी बन गए हैं।
हम बेहद मुश्किली के दौर से गुजर रहे हैं। लाखों की नौकरियां, रोजगारी जाती रही हैं। ईश्वर की कृपा से खेती रुकी नहीं है। फसल कटी है, अनाज-धारा चलती आ रही है। लेकिन अगर जनता अपनी खरीदारी की ताकत को खोने लगे, अनाज का क्रय-विक्रय अड़चन में पड़े तो संकट होगा।

Virus Mask Images, Stock Photos & Vectors | Shutterstock

आमदनियां कटी हैं। आगे और भी कट सकती हैं।
और साथ-साथ महामारी रुकने का नाम नहीं ले रही। बेबसी से हम हर रोज आंकड़े परखते हैं… पीड़ितों, मृतकों की संख्या कम हुई भी कि नहीं? बिल्कुल नहीं। अमेरिका के बाद हमारा नंबर आता है। जल्द ही अमेरिका को पीछे छोड़ देगा हिंदुस्तान!
दुख की बात यह है कि यह स्थिति कुछ और हो सकती थी। इतनी बदतर नहीं। क्योंकि उपाय हमारे हाथों में रहा है : मास्क। सम्माननीय प्रधानमंत्रीजी और अनेक विशेषज्ञ कहते आए हैं, दुहराते आए हैं कि ‘मास्क पहनिए… इससे श्रेष्ठ उपाय नहीं… मास्क पहनिए और हाथों को साबुन-पानी से धोते रहिए..। महंगा उपाय नहीं यह, लेकिन हम मानें तब ना!

Hand washing: Wearing masks and gloves to protect yourself against  coronavirus? Experts believe it won't help - The Economic Times
नहीं मान रहे। मास्क हासिल करे हैं, लेकिन बाज बार देखिए मास्क पहनने के तरीके को। नाक से नीचे… और कई बार मुंह से भी नीचे…ठोड़ी पर टिका हुआ रहता है मास्क। और तो और, कई बार आप देखेंगे जनाब गले पर लटकाए हुए हैं मास्क को, जैसे कि वह कोई स्कार्फ हो।
यकीन नहीं होता! ऐसा नहीं कि अशिक्षित लोग ऐसा करते हैं। ना! पढ़े-लिखे लोगों को भी आप पाएंगे यही करते हुए। चले आ रहे हैं श्रीमान, घूमते आ रहे हैं हुजूर… दुकानों से, सड़क पर, पार्क में, मास्क को ठोड़ी पर टिकाए, गले में लटकाए हुए।

Being anti-mask doesn't make you disabled | Newsday

हमारे समाज की भी कुछ जिम्मेदारी है। वायरस किसी को भी अपने लपेटे में ले सकता है। बहुत ध्यान से रहने वाले को भी। न जाने कब, कहां कोई कसर रह जाए और लग जाए वायरस! सबकी अपनी-अपनी तकदीर है। लेकिन कुछ तो मेहनत करनी चाहिए हमें, कुछ तो जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए!
और फिर (हमारी राष्ट्रीय आदत) थूक-पीक! भाईसाब, लोग मर रहे हैं हजारों की संख्या में थूक से फैलने वाले वायरस से और आप चबाए जा रहे हैं पान, तंबाकू, गुटखा और हमेशा की तरह पीक थूके जा रहे हैं यत्र-तत्र-सर्वत्र! रुकिए जनाब! हाथ जोड़कर प्रार्थना है, यह आदत केवल अशिष्ट ही नहीं, आज खतरनाक है।
मास्क का उपासक बनना चाहिए हम सबको। सूती कपड़े का हो तो उसको धो-धोकर, उसका ख्याल रख कर, बाकायदा पहनना चाहिए। बड़े फायदे के लिए यह एक छोटी सी कीमत है।

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