सोची-समझी चाल: चीन अब नेपाल के स्कूली बच्चों के मन में भारत विरोधी जहर भर रहा
1 min readनेपाल की शिक्षा व्यवस्था अब तक भारत से बहुत मिलती जुलती थी, लेकिन चीन अब धीरे-धीरे नेपाल के स्कूली बच्चों के मन में भारत विरोधी जहर भर रहा है। इसके लिए वह अपने स्वयंसेवी शिक्षकों के माध्यम से अभियान चला रहा है।
अब तक नेपाल के 136 स्कूलों में चीनी भाषा मंदारिन पहुंच गई है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित कई स्कूल ऐसे हैं जहां इसकी पढ़ाई होती है। इन शिक्षकों का वेतन भी चीन से ही आता है। ये शिक्षक बच्चों को चीनी भाषा के साथ भारत के प्रति नफरत का पाठ पढ़ा रहे हैं।
नेपाल व भारत के संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक लिहाज से बेहद मजबूत हैं। भारत को नेपाल अपना बड़ा भाई मानता है। भारत ने नेपाल की हर क्षेत्र में मदद की है और नेपाल भी भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देता है, लेकिन अब चीन की नजर इस रिश्ते पर है।
वह भारत-नेपाल की पुरातन परंपरा को नष्ट करने के लिए नेपाल के स्कूलों को अपना निशाना बना रहा है। उसने इन स्कूलों में अपनी भाषा मंदारिन (मैंडोरिन) पढ़ाने के लिए विशेष तौर पर शिक्षक नियुक्त किए हैं। इसके लिए चीन के 226 स्वयंसेवी शिक्षकों की तैनाती नेपाल में की गई है। अब तक 136 निजी व सरकार के अधीन विद्यालयों में इन शिक्षकों की तैनाती की गई है। औसतन प्रति विद्यालय में दो शिक्षक तैनात करने की योजना है।
ये शिक्षक छात्रों को चीनी भाषा के साथ-साथ उन्हें चीन की गाथा भी सुना रहे हैं। वहीं भारत के प्रति छात्रों के मन में कई द्वेष भावनाएं भी भर रहे हैं। इन स्कूलों में भारत-नेपाल सीमा से सटे स्कूल भउआ नाका, नरैनापुर व गांव विकास समिति लक्ष्मनपुर विद्यालय सहित कई अन्य नेपाली स्कूल शामिल हैं।
नेपाल के लक्ष्मनपुर गांव विकास समिति स्कूल के शिक्षक रमेश कुमार का कहना है कि उनके स्कूल में अधिकांश बच्चे मधेशी हैं। यहां लॉकडाउन से पहले दो स्वयंसेवी चीनी शिक्षक की तैनाती हुई थी, लेकिन लॉकडाउन में स्कूल बंद होने के कारण पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
स्कूल खुलेगा तो चीनी शिक्षक बच्चों को पढ़ाएंगे। वे अभी गांव में ही हैं। यह चीनी भाषा पढ़ाने के साथ-साथ लोगों में स्किल डेवलपमेंट का काम करते हैं। उनका कहना है कि यह भाषा सीखने के बाद उन्हें चीन में आसानी से नौकरी मिल सकेगी।
जबकि भउआ के सरकारी स्कूल के शिक्षक नवीन कुलश्रेष्ठ का कहना है कि उनके यहां एक चीनी शिक्षक की तैनाती हुई है। वह स्वयंसेवक के तौर पर सिर्फ एक वर्ष के लिए तैनात किए गए हैं। वह केवल चीनी भाषा सिखाते हैं। स्कूल में अधिकांश बच्चे नेपाली मूल के पर्वतीय क्षेत्रों के रहने वाले हैं।
नेपाल के निजी स्कूलों में सिद्धार्थ वनस्थली संस्थान हो या फिर यूलेनस स्कूल सभी ने मंदारिन की पढ़ाई अनिवार्य कर दी गई है। यह भाषा पढ़ाने वाले शिक्षकों का वेतन चीन सरकार देती है। उल्सेंस स्कूल के प्रिंसिपल मेडिन बहादुर लामिछाने ने माना कि उनके यहां मंदारिन पढ़ाने के लिए दो चीनी स्वयंसेवक शिक्षक नियुक्त किए गए हैं।
यही नहीं, निजी स्कूलों में मंदारिन को बढ़ावा देने के लिए चीनी दूतावास वहां के प्रमुख स्कूलों से मिलकर प्रोत्साहित कर रहा है। उसने 54 स्वयंसेवी शिक्षकों के सातवें समूह को सम्मानित भी किया है।
अभी हाल ही में नेपाल-चीन यूथ फ्रेंडशिप एसोसिएशन के अध्यक्ष पौडेल व श्यामे वांगफेल हायर सेकंडरी स्कूल के प्रिंसिपल सिम्खडा के साथ हुई बैठक में स्कूलों में चीनी भाषा पढ़ाने पर बल दिया गया।
नेपाल के लगभग सभी स्कूलों में अब चीनी भाषा के साथ वहां की संस्कृति का गुणगान किया जा रहा है। उन्हें यह भी बताया जा रहा है कि भारत ने उनके किस-किस भूभाग पर कब्जा किया या फिर नेपाल का जो विकास नहीं हो पा रहा है, उसका कारण भारत है।
चीन उनको विश्व पटल पर लाना चाहता है ताकि नेपाल के सभी युवाओं को रोजगार मिल सके। इसे लेकर मधेशियों में नाराजगी भी है। भगवानपुर के मधेशी नेता रामरंग महतो कहते हैं कि यह एक सोची-समझी चाल है। ताकि बच्चों की कोमल भावनाओं को बदला जा सके।