April 18, 2024

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ईद के मौके पर दी शुभकामनाएं

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देशभर में आज बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है. ईद-उल-अजहा जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है मुस्लिम समाज का महत्वपूर्ण त्योहार है. दिल्ली की जामा मस्जिद में लोगों ने सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर नमाज अदा की.

कोरोना संकट के चलते कुछ लोगों ने मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर भी नमाज अदा की. मस्जिद प्रशासन ने लोगों से बार-बार सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर नमाज अदा करने की अपील की.

कुछ नमाजी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते नजर आए तो कुछ ने उल्लंघन भी किया. कई मास्क के बिना भी मस्जिद में घूमते नजर आए.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आज ईद के मौके पर लोगों को शुभकामनाएं दीं.

उन्होंने ट्वीट में लिखा कि यह दिन हमें एक न्यायपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज बनाने के लिए प्रेरित करता है. इस दिन भाईचारे और करुणा की भावना को आगे बढ़ाया जा सकता है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी ईद की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किया. उन्होंने लिखा कि ईद मुबारक, ईद-उल-जुहा का त्‍योहार आपसी भाईचारे और त्‍याग की भावना का प्रतीक है

तथा लोगों को सभी के हितों के लिए काम करने की प्रेरणा देता है आइए, इस मुबारक मौके पर हम अपनी खुशियों को जरूरतमंद लोगों से साझा करें और कोविड-19 की रोकथाम के लिए सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें.

पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय ईद-उल-अजहा को त्याग और बलिदान का त्योहार मानते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने की 10 तारीख को बकरीद या ईद-उल-जुहा मनाई जाती है. बकरीद रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है. बता दें मीठी ईद के बाद यह इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है.

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान किया था. ऐसा माना जाता है कि खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवनदान दिया था.

हजरत इब्राहिम को 90 साल की उम्र में एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा. एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को अपने प्रिय चीजों को कुर्बान करने का आदेश सुनाया.

इसके बाद एक दिन दोबारा हजरत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने उनसे अपने सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा, तब इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए.

हजरत इब्राहिम को लग रहा था कि कुर्बनी देते वक्त उनकी भावनाएं उनकी राह में आ सकती हैं. इसलिए उन्होंने अपनी आंख पर पट्टी बांध कर कुर्बानी दी. उन्होंने जब अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उन्हें अपना बेटा जीवित नजर आया.

वहीं कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा था. इसी वजह से बकरीद पर कुर्बानी देने की प्रथा की शुरुआत हुई.

बकरीद को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. इसके बाद इस दिन जानवरों की कुर्बानी दी जाने लगी. बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ मस्जिद में अल सुबह की नमाज अदा करते हैं.

इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा गरीबों, दूसरा रिश्तेदारों और तीसरी हिस्सा अपने लिए रखा जाता है.

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