ओडिशा के बाद बंगाल में मिला अलग प्रजाति का पीले रंग का कछुआ सब देखते रह गए :-
1 min readपश्चिम बंगाल के बर्द्धमान में एक तालाब में पीला कछुआमिला है. इसे ‘फ़्लैपशेल कछुआ’ माना जाता है जो दुर्लभ प्रजाति का है. इस साल में यह दूसरी बार है जब पीला कछुआ मिला है. इससे पहले ओडिशा में बालासोर ज़िले के सुजानपुर गांव में लोगों ने ऐसे ही एक दुर्लभ पीले कछुए को पकड़ा था और उसे ज़िला वन अधिकारियों को सौंप दिया था |
कई लोगों का यह भी मानना है कि इस कछुए को अवर्णता (Albinism) की बीमारी है जिसकी वजह से किसी प्राणी में मेलानिन की कमी हो जाती है. रंग में इस तरह का बदलाव जीन में आने वाली कुछ स्थाई गड़बड़ी या जन्मजात गड़बड़ी के कारण भी होता है जो टाइरोसीन कणिकाओं के कारण होता है. यह कछुआ अल्बिनो है. इस कछुए का शरीर और ऊपरी शेल पीला है. आंखों की पुतली को छोड़कर कछुए का सब कुछ पीला है |
नरम कोशिकाओं वाला भारतीय कछुआबर्द्धमान सोसायटी फ़ॉर ऐनिमल वेल्फ़ेर के सदस्य अर्नब दास ने बताया कि कछुए के शरीर पर कई जगह घाव है और उसे इलाज की ज़रूरत है. यह नरम कोशिकाओं वाला भारतीय कछुआ है. यह मादा है और इसकी उम्र लगभग डेढ़ साल है. शारीरिक गड़बड़ियों की वजह से इसका रंग पीला पड़ गया है. हालांकि, यह बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का कछुआ है. इस साल के शुरू में इसी तरह का एक कछुआ ओडिशा में मिला था. कुछ लोगों ने दावा किया कि इसी तरह का कछुआ पश्चिम बंगाल के काकद्वीप में खेतों से भी मिला था |
म्यांमार और पाकिस्तान में पाया जाता है इस तरह का कछुआ
बर्द्धमान विश्व विद्यालय में जीव विज्ञान विभागके प्रोफ़ेसर गौतम चंद्र का कहना था कि यह कछुए की दुर्लभ प्रजाति है. इस तरह का कछुआ म्यांमार, पाकिस्तान और दूसरे देशों में पाया जाता है. अल्बिनो एक तरह का त्वचा रोग़ है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कछुआ पहले सफ़ेद रंग का था और इसके बाद यह पीला हो गया |