September 23, 2024

Sarvoday Times

Sarvoday Times News

सही वक्त पर दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बनाने में माहिर नीतीश एक बार फिर बनेंगे मुख्यमंत्री :-

1 min read

राजनीति में सही समय पर दोस्तों को दुश्मन और दुश्मनों को दोस्त बनाने की कला में माहिर और करीब 15 साल से बिहार में सत्ता की कमान संभाल रहे नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार हैं।

भले ही इस बार चुनाव में जद (यू) का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा और उसे पिछली बार 2015 विधानसभा चुनाव में मिली 71 सीटों के मुकाबले इस बार मात्र 43 सीटें मिलीं हैं, लेकिन सियासी वक्त की नजाकत को समझने वाले नीतीश कुमार इस बार भी मुख्यमंत्री बने रहने में कामयाब रहे।

Nitish Kumar Will Be Sworn In As Bihar Cm For The Seventh Time - नीतीश कुमार  बनेंगे सातवीं बार मुख्यमंत्री, जानिए कब-कब बने बिहार के सीएम - Amar Ujala  Hindi News Live

मंडल की राजनीति से नेता बनकर उभरे नीतीश कुमार को बिहार को अच्छा शासन मुहैया कराने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन उनके विरोधी उन पर अवसरवादी होने का आरोप लगाते रहे हैं। भले ही इसे राजनीतिक अवसरवादिता कहा जाए या उनकी बुद्धिमत्ता, राजनीतिक शतरंज की बिसात पर नीतीश की चालों ने वर्षों से सत्ता पर उनका दबदबा बनाए रखा है। नीतीश ने देश की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले बिहार में हिन्दुत्ववादी ताकतों का वर्चस्व कायम नहीं होने दिया और राज्य में उनके कद के कारण ही भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद बिहार में अपनी पार्टी से किसी को उम्मीदवार न बनाकर नीतीश को गठबंधन की ओर से उम्मीदवार घोषित किया। कोई भी राजनीतिक चाल चलने से पहले अपने सभी विकल्पों पर अच्छी तरह सोच-विचार करने के लिए जाने-जाने वाले कुमार कभी लहरों के विरुद्ध जाने से संकोच नहीं करते।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले कुमार ने जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, राज्य विद्युत विभाग में नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और राजनीतिक जुआ खेलने का फैसला किया। बिहार के किसी शिक्षित युवा के लिए ‘सरकारी नौकरी’ ठुकराकर राजनीति में भाग्य आजमाने का फैसला करना बड़ी बात है।
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में अपने साथ राजनीति में कदम रखने वाले लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के विपरीत कुमार को लंबे समय तक चुनाव में जीत नहीं मिली। उन्हें 1985 के विधानसभा चुनाव में लोकदल के उम्मीदवार के तौर पर हरनौत विधानसभा सीट से पहली बार सफलता मिली, हालांकि उस चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया था। यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ महीने बाद हुआ था।
पहली चुनावी जीत के 4 साल बाद वे बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। यह वही दौर था, जब सारण से लोकसभा सदस्य रहे लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त जनता दल के भीतर मुख्यमंत्री के लिए नीतीश ने लालू का समर्थन किया था।
इसके बाद कुछ वर्षों में लालू प्रसाद बिहार की राजनीति में सबसे ताकतवर नेता के तौर पर उभरे, हालांकि बाद में चारा घोटाले में नाम आने और फिर पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद वे विवादों से घिरते चले गए।

नीतीश ने भी 1990 के दशक के मध्य में ही जनता दल और लालू से अपनी राह अलग कर ली तथा बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी का गठन किया। उनकी समता पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और नीतीश ने एक बेहतरीन सांसद के रूप में अपनी पहचान बनाई तथा अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में बेहद ही काबिल मंत्री के तौर पर छाप छोड़ी।
बाद में लालू प्रसाद और शरद यादव के बीच विवाद हुआ। यादव ने अपनी अलग राह पकड़ ली। इसके बाद समता पार्टी का जनता दल के शरद यादव के धड़े में विलय हुआ जिसके बाद जनता दल (यूनाइटेड) वजूद में आया। जद (यू) का भाजपा का गठबंधन जारी रहा।

साल 2005 की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा-जद (यू) के गठबंधन वाला राजग कुछ सीटों के अंतर से बहुमत के आंकड़े दूर रह गया जिसके बाद राज्यपाल बूटासिंह ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की जिसको लेकर विवाद भी हुआ। उस वक्त केंद्र में संप्रग की सरकार थी। इसके कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की बिहार में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और यहीं से बिहार की राजनीति में तथाकथित ‘लालू युग’ के पटाक्षेप की शुरुआत हुई।
सत्ता में आने के बाद नीतीश ने नए सामाजिक समीकरण बनाते हुए पिछड़े वर्ग में अति पिछड़ा और दलित में महादिलत के कोटे की व्यवस्था की। इसके साथ ही उन्होंने स्कूली बच्चियों के लिए मुफ्त साइकल और यूनिफॉर्म जैसे कदम उठाए और 2010 के चुनाव में उनकी अगुवाई में भाजपा-जद (यू) गठबंधन को एकतरफा जीत मिली।
इसके बाद भाजपा में ‘अटल-आडवाणी युग’ खत्म हुआ और नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर आए तो नीतीश ने 2013 में भाजपा से वर्षों पुराना रिश्ता तोड़ लिया।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जद (यू) को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा ने बिहार से बड़ी जीत हासिल की। नीतीश ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। करीब 1 साल के भीतर ही मांझी का बागी रुख देख नीतीश ने फिर से मुख्यमंत्री की कमान संभाली।

2015 के चुनाव में वे राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े और इस महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई। नीतीश ने अपनी सरकार में उपमुख्यमंत्री एवं राजद नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि कुछ घंटों के भीतर ही भाजपा के समर्थन से एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने।

उन्हें नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक चुनौती के तौर पर देखने वाले लोगों ने नीतीश के इस कदम को जनादेश के साथ विश्वासघात करार दिया। हालांकि वे बार-बार यही कहते रहे कि ‘मैं भ्रष्टाचार से समझौता कभी नहीं करूंगा।

loading...
Copyright © All rights reserved. | Newsphere by AF themes.