किसानों ने केंद्र सरकार को दिया अल्टीमेटम, कहा- बातचीत विफल रही तो उठाने होंगे सख्त कदम
1 min readदिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर 39 दिन से बैठे किसानों ने वार्ता से पहले सरकार को अल्टीमेटम दिया है। किसानों की कोऑर्डिनेशन कमेटी का साफ-साफ कहना है कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गई तो 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ “किसान गणतंत्र परेड” करेंगे।
किसान प्रतिनिधियों ने कहा “हमने सरकार को पहले दिन ही बता दिया था कि हम इन तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द कराए बिना यहां से हटने वाले नहीं है। सरकार के पास दो ही रास्ते हैं: या तो वह जल्द से जल्द इस बिन मांगी सौगात को वापस ले और किसानों को एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी दे, या फिर किसानों पर लाठी-गोली चलाए। आर पार की लड़ाई में अब हम एक निर्णायक मोड़ पर आ पहुंचे हैं। 26 जनवरी तक हमारे दिल्ली में डेरा डालने के दो महीने पूरे हो जाएंगे। हमने इस निर्णायक कदम के लिए गणतंत्र दिवस को चुना क्योंकि यह दिन हमारे देश में गण यानी बहुसंख्यक किसानों की सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक है।”
इस अवसर पर संयुक्त किसान मोर्चा ने अब से गणतंत्र दिवस तक आंदोलन को तेज और व्यापक बनाने के अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की। इस आंदोलन को पूरे देश में गति देने के लिए 6 जनवरी से 20 जनवरी तक सरकारी झूठ और दुष्प्रचार का भंडाफोड़ करने के लिए “देश जागृति पखवाड़ा” मनाया जाएगा। इस पखवाड़े में देश के हर जिले में धरने और पक्के मोर्चे आयोजित किए जाएंगे।
किसानों में और बाकि जनता में जागृति लाने के लिए अनेक स्थानों पर रैलियां और सम्मेलन आयोजित होंगे। अगर सरकार से 4 जनवरी की वार्ता विफल रहती है तो 6 जनवरी को किसान केएमपी एक्सप्रेसवे पर मार्च निकालेंगे। उसके बाद शाहजहांपुर पर मोर्चा लगाए किसान भी दिल्ली की तरफ कूच करेंगे। 13 जनवरी को लोहड़ी/ संक्रांति के अवसर पर देशभर में “किसान संकल्प दिवस” बनाया जाएगा और इन तीनों कानूनों को जलाया जाएगा। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मना कर देश की खेती में महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया जाएगा। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में “आजाद हिंद किसान दिवस” मनाकर सभी राजधानियों में राज्यपाल के निवास के बाहर किसान डेरा डालेंगे।
किसान नेताओं ने रोष व्यक्त किया की सात दौर की वार्ता के बाद भी सरकार इस आंदोलन की प्रमुख मांगो पर टस से मस नहीं हुई है। 30 दिसंबर की वार्ता के बाद दो छोटे मुद्दों पर झुककर सरकार ने यह भ्रम फैलाने की कोशिश की मानो आधी मांगे स्वीकार कर ली गई है। सच यह है कि उन दो बातों पर भी सरकार का लिखित प्रस्ताव अब तक नहीं मिला है। सच यह है कि तीनों कानूनों को रद्द करने के असली मुद्दे पर सरकार पूरी तरह अडी हुई है।
ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। सच यह है कि वार्ता में सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग पर सिद्धांत रूप से भी सहमति जताने से इनकार कर दिया है। किसान नेताओं ने कहा कि”सरकार इस कड़ाके की सर्दी में हमारे धैर्य की बहुत परीक्षा ले चुकी है। अगर अब भी सरकार किसानों की बात मानने को तैयार नहीं है, तो हमारे पास अपने मोर्चों से आगे बढ़ दिल्ली में प्रवेश करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता है।”