सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह माना है कि साल 1856 से लेकर 1949 तक यहां नमाज अदा की जाती रही है। साथ ही मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी और मूर्ति रखे जाने की घटना गलत थी।
मस्जिद को ढहाए जाने की घटना को भी गैरकानूनी माना गया है। लेकिन मस्जिद का स्थान दूसरी जगह दे दिया गया है। मस्जिद का स्थान दूसरी जगह क्यों हुआ और मस्जिद के हक फैसला क्यों नहीं दिया गया, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।
यह हमारा कानूनी हक : बादशाह खान
बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे मुफ्ती बादशाह खान बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अब तक दूसरे पक्ष से लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है।
कोर्ट ने माना है कि बाबरी मस्जिद थी, उसको ढहाया जाना गैर कानूनी था, वहां साल 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी, साथ ही किसी मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया था लेकिन फैसले में विवादित स्थान दूसरे पक्ष को देते हुए मस्जिद के लिए अलग से जगह दिए जाने की बात कही गई है।
उन्होंने बताया है कि हम जब सब जगह सही हैं तो हमें दूसरी जगह जमीन क्यों दी जाए। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार याचिका दायर होगी। यह हमारा कानूनी हक है।
जनहित के लिए किया जाता है धारा 142 का प्रयोग : खालिक
मौलाना महफूज उर रहमान के नामिनी पक्षकार मो. खालिक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मुस्लिम समुदाय पर लगे सभी पूर्ववत आरोपों को खारिज किया है।
बाबरी मस्जिद का बिना किसी मंदिर को तोड़कर होने से लेकर नमाज होने तक की बात को स्वीकार किया है लेकिन अपने फैसले में संविधान की धारा 142 का प्रयोग किया है।
वह बताते हैं कि संविधान की धारा 142 का वजूद इसलिए हुआ है कि यह सिर्फ जनहित के कार्यों के लिए लिया जा सके न कि इस धारा का प्रयोग कर किसी के साथ अन्याय किया जाए। उन्होंने बताया है कि मस्जिद को अन्यत्र जगह क्यों दी गई, इसको लेकर पुर्नविचार याचिका दायर की जाएगी।
फैसले में खामियां इसलिए करेंगे याचिका : मो. उमर
बाबरी मस्जिद के मुद्दई मो. उमर का कहना है कि उनको रविवार को लखनऊ बुलाया गया था। सुन्नी वक्फ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने फैसले के बाबत सारी बातों को बताया है।
मो. उमर का कहना है कि फैसले में कई खामियां है। जब सुप्रीम कोर्ट सारी बातों को मान रहा है तो अखिर में फैसला क्यों दूसरे पक्ष के हक में दे रहा है, यह जानना जरूरी है।
वह बताते हैं कि यह कानूनी लड़ाई है, इसमें हम सुन्नी वक्फ बोर्ड व मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ हैं। वह बताते हैं कि जब हम कोर्ट जाएंगे तो सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगी।