December 13, 2024

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दीए के नीचे अंधेरा: लखनऊ में डग्गामार बसों का संचालन, प्रशासन की मिलीभगत से जारी

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डग्गामार बसों का संचालन थमने का नाम नहीं ले रहा है। जहां उन्नाव में बस एक्सीडेंट के मामले की जांच चल रही है, वहीं दूसरी तरफ लखनऊ से इंदौर चलने वाली डग्गामार बसों में सवारी की जगह भारी मात्रा में बिना बिल के माल जैसे नारकोटिक्स दवाएं, दाल, चावल, फल, और अन्य सामग्री का ट्रांसपोर्टेशन खुलेआम किया जा रहा है। यह सब प्रशासन और अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है।

आज दिनांक 20 जुलाई 2024 को पत्रकारों की एक टीम ने पिकाडिली होटल के निकट एक डग्गामार बस (संख्या UP93CT9796) को पकड़ा जिसमें नारकोटिक्स दवाएं, दाल, चावल, और अन्य सामग्री बिना बिल के अनलोड की जा रही थी। हमारी टीम ने तत्काल स्थानीय थाना कृष्णा नगर और संबंधित अधिकारियों को सूचित किया, लेकिन किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। काफी फोन कॉल्स के बाद कृष्णा नगर कोतवाली की पुलिस मौके पर पहुंची और दिखावे के लिए ड्राइवर को हिरासत में ले लिया। जांच में पाया गया कि बस के कागजात भी अधूरे थे और कई चालान भी लंबित थे। इसके बावजूद, चौकी एल.डी.ए. प्रथम फीनिक्स यूनाइटेड मॉल के प्रभारी ने मामले को रफा-दफा कर दिया और बस को माल के साथ छोड़ दिया। दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इस मामले में कोतवाली कृष्णा नगर प्रभारी से जब शाम को संपर्क किया गया, तो उन्होंने पहले कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जब दुबारा पूछा गया कि पकड़े गए माल पर कार्रवाई करने का फर्ज बनता है, तो उन्होंने कहा कि ड्राइवर ने कुछ लोगों के खिलाफ प्राथना पत्र दिया है। अब सवाल यह उठता है कि चोर चोरी भी करे और पुलिस की मिलीभगत से शिना जोरी भी?

इस संबंध में चौकी प्रभारी से फोन पर संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया और कोई जानकारी नहीं दी। फोन काट दिया गया। अब देखना यह है कि इस मामले में डग्गामार बस और बस संचालक के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है ताकि बस में सवारी करने वालों की जान से खिलवाड़ करने वाले लालची लोग भविष्य में ऐसी हरकतें न कर सकें।

लखनऊ की जनता और मीडिया प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठा रही है। आखिर कब तक प्रशासन की लापरवाही और मिलीभगत के चलते जनता की जान खतरे में डाली जाएगी? यह मामला शासन-प्रशासन की पोल खोलता है और हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सच में “दीए के नीचे अंधेरा” वाली कहावत सच हो रही है?

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