सोमवार ज्येष्ठ मास का पहला प्रदोष व्रत आज पढ़े पौराणिक व्रतकथा। ..
1 min readआज 7 जून सोमवार को ज्येष्ठ मास का पहला प्रदोष व्रत है. सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है. आज भक्तों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोम प्रदोष व्रत रखा है और शिव जी की पूजा अर्चना की. शाम को फलाहार के बाद व्रत खोला जाएगा.
सोम प्रदोष व्रत के दिन भक्त भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश भगवान और कार्तिकेय जी की पूजा अर्चना की. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रदेव ने सबसे पहले भगवान शिव की कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखा था.
दरअसल, किसी पाप के कारण चंद्रदेव को क्षय रोग हो गया था. इसी रोग से मुक्ति के लिए उन्होंने प्रदोष व्रत रखा था. सोम प्रदोष व्रत के दिन पूरे दिन निराहार रहकर व्रत
पूजा-पाठ करें शाम के समय पूजा के बाद फल और दूध ले सकते हैं. प्रदोष व्रत की पूजा अगर प्रदोष काल यानी कि गोधूली बेला की जाए तो अधिक फलदायी होती है. आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत की कथा…
पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी.
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था.
शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा.
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया.
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा.
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं. अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए