‘पंचामृत योजना’ से बढ़ेगी गन्ने की पैदावार
1 min readकिसानों की आमदनी दोगुना करना सरकार का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को
हासिल करने के दो मूलभूत मंत्र हैं। पहला न्यूनतम लागत में अधिकतम उत्पादन
और दूसरा उत्पादन का उचित मूल्य। न्यूनतम लागत में अधिकतम उत्पादन में
तकनीक की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रदेश में गन्ना किसानों की संख्या को देखते हुए गन्ने की खेती की लागत को
कम करना और समय से गन्ना मूल्य भुगतान जरूरी हो जाता है। सरकार गन्ने का
प्रति कुंतल मूल्य बढ़ाकर और गन्ने का रिकॉर्ड भुगतान कर यह काम कर रही है।
अब सरकार का जोर न्यूनतम लागत में अधिक पैदावार के लिए खेती की नई
तकनीक के साथ गन्ने के साथ सहफसली खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इस क्रम में
राज्य सरकार ने पिछले पेराई सत्र के लिए गन्ना समर्थन मूल्य गन्ने की खूबी के
अनुसार बढ़ाया था।
गन्ने की खेती में नई तकनीक का प्रयोग कर उपज बढ़ाने के लिए गन्ना
विभाग ने गन्ने की खेती के लिए "पंचामृत योजना" नाम से एक नई योजना शुरू
की है। इसमें गन्ना बोआई की आधुनिक विधा ट्रेंच, पेड़ी प्रबंधन, ड्रिप इरीगेशन,
मल्चिंग और सहफसल शामिल है। इसके नाते ही इसे पंचामृत नाम दिया गया
है। इसमें हर चीज का अपना लाभ है। मसलन ड्रिप इरीगेशन से पानी की खपत
50 से 60 फीसद कम हो जाएगी। जरूरत के अनुसार नमीं बरकरार रहने से
पौधों की बढ़वार अच्छी होगी। पत्तियां मल्चिंग के काम आने से इनको जलाने
और जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या हल हो जाएगी। कालांतर में ये
पत्तियां सड़कर खाद के रूप में खेत को प्राकृतिक रूप से उर्वर बनाएंगी।
शरदकालीन गन्ने की खेती के लिए 15 सितम्बर से लेकर 30 नवम्बर तक
का समय उपयुक्त होता है। इस सीजन के गन्ने की फसल का उपज भी
बसंतकालीन गन्ने की खेती की तुलना में अधिक होता है। इस सीजन में बोए जाने