महज 40 घंटे की लड़ाई के बाद गोवा के पुर्तगाली गवर्नर ने भारतीय सेना के समक्ष किया था ‘सरेंडर’.
1 min readपुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वह यहां पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे। वहीं 1961 में वह भारत छोड़ने वाले भी अंतिम यूरोपीय शासक थे। गोवा में पुर्तगालियों का शासन अंग्रेजों से काफी अलग था।यहां के शासकों ने गोवा के लोगों को वही अधिकार दिए थे तो पुर्तगाल के लोगों को थे।
गोवा क्षेत्रफल में छोटा जरूर था लेकिन रणनीतिकतौर पर काफी अहम था। छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और यहां पर विदेशी व्यापारी काफी आते थे। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ही मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी इसकी तरफ आकर्षत होने से खुद को नहीं रोक पाए थे। गोवा पर काफी समय तक बाहमानी सल्तनत और विजयनगर सम्राज्य की हुकूमत रही है।
इसके बाद भारत सरकार ने गोवा सरकार से लगातार बातचीत करने की कोशिश की लेकिन हर बार यह पेशकश ठुकरा दी गई। 1 सितंबर 1955 को भारत ने गोवा में मौजूद अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया। साथ ही पंडित नेहरू ने कहा कि भारत सरकार गोवा में पुर्तगाली शासन की मौजूदगी को किसी भी सूरत से बर्दाश्त नहीं करेगी।
18 दिसंबर 1961 को आखिरकार वो दिन आया जब भारतीय सेना को गोवा पर चढ़ाई का आदेश दे दिया गया। आदेश के साथ ही सेना नने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी। इसको ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था। भारतीय सेना की त्वरित कार्रवाई के बाद पुर्तगालियों की सेना बुरी तरह बिखर गई और टूट गई।