सोनभद्र कांड: 70 पन्नों की रिपोर्ट पर तत्कालीन सरकार संज्ञान लेती तो इतना बड़ा नरसंहार नहीं होता
1 min readरिपोर्ट बाहर आते ही जैन को भेजा था आगरा
सोनभद्र में वन विभाग की जमीन के खेल को उजागर करने के बाद एके जैन का तबादला आगरा कर दिया गया था। आगरा आने के बाद भी उन्होंने ताजमहल के पीछे चार हजार व बाबरपुर रेंज में हजारों पेड़ काटने की रिपोर्ट शासन को भेजी थी। इसके बाद एनजीटी में सुनवाई हुई। सुनवाई चल रही थी, तो सरकार की ओर से दलील दी गई कि तीज के पीछे पेड़ों की नहीं, बल्कि झाड़ियों की कटाई की गई थी। मामले में हस्तक्षेप करते हुए ए.के. जैन ने शपथ-पत्र दिया था कि झाड़ियां नहीं पेड़ काटे गए थे। मामला जब बढ़ा तो इसरो की टीम ने पेड़ों की कटाई की जांच की। इसमें भी 3500 पेड़ों के काटे जाने की पुष्टि हुई थी लेकिन इस मामले को भी दबा दिया गया।
पूरे देश को हिला देने वाले सोनभद्र के उभ्भा नरसंहार ने
सोनभद्र के उभ्भा नरसंहार ने वनभूमि को कब्जाने के लिए वर्षों से चल रहे सुनियोजित षड्यंत्र की कलई खोलकर रख दी है। 40 हजार करोड़ की एक लाख हेक्टेयर वनभूमि को गैर वनभूमि घोषित कर कब्जाने का खेल कई दशकों से जारी है। यदि वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक ए.के. जैन द्वारा तैयार 70 पन्नों की रिपोर्ट पर तत्कालीन सरकार संज्ञान लेती तो इतना बड़ा नरसंहार नहीं होता।
जैन की मौत भी सवालों में
आगरा निवासी सख्त अधिकारी एके जैन के भाई समाजसेवी विवेक जैन सोनभद्र कांड के पीछे घोटाले की परतें खुलने और रिपोर्ट को देखते हुए आरोप लगाते हैं कि 11 जुलाई 2018 को सड़क दुर्घटना में एके जैन की मौत नहीं हुई बल्कि वह सुनियोजित तरीके से की गई हत्या थी। हादसे के बाद पुलिस और प्रशासन ने उनकी कार को कुछ घंटों में ही मौके से हटा दिया। विवेक ने बताया कि भाई अपने साथ नोटपैड और बैग रखते थे, जिसमें सभी गोपनीय दस्तावेज रहते थे। हादसे के बाद दोनों चीजें नहीं मिलीं, जबकि पुलिस और प्रशासन का कहना है कि उन्हें कार से कुछ नहीं मिला। कार को चला रहे चालक और साथ बैठे अन्य कर्मचारी को खरोंच तक नहीं आई थी, जबकि पीछे की सीट पर बैठे एके जैन की मौत हो गई।
केंद्र ने माना था गंभीर
एके जैन ने अपनी रिपोर्ट केंद्र के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भी दी थी। इसके जवाब में अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (केंद्रीय) डीपी सिन्हा ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को अवगत कराया था कि ओबरा एवं रेणुकूट वन प्रभाग में वन अधिनियम- 1927 की धारा 4 के अंतर्गत विज्ञापित भूमि को वन क्षेत्र से पृथक किए जाना गंभीर प्रकरण है। हालांकि जैन की रिपोर्ट पर 2014 और बाद में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सूत्रों के मुताबिक, तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक ने पत्रांक संख्या 401/ 11 -बी -6 दिनांक 29 मार्च 2014 को 70 पेज की रिपोर्ट शासन को भेजी थी। वर्ष 2014 में वह सोनभद्र में मुख्य वन संरक्षक थे। उन्होंने वहां वन विभाग की जमीनों पर अवैध कब्जों की रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें जिले की करीब एक लाख हेक्टेयर जमीन पर भू-माफिया का कब्जा बताया था।
जैन ने रिपोर्ट में सीबीआई जांच की भी मांग की थी। उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया था कि वन भूमि को गैर वन भूमि में बदलना वन संरक्षण अधिनियम की अवहेलना है। यह अत्यंत गंभीर प्रकरण है। इस संबंध में शीघ्र आवश्यक कार्यवाही करने की अपेक्षा की गई। साथ ही कार्यवाही की सूचना कार्यालय को प्रेषित किए जाने की बात भी कही गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि यह जमीन आदिवासियों की है। वह इस पर पुश्तैनी खेती-बाड़ी करते हैं। जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास है। कुछ नौकरशाहों ने इन जमीनों को निजी हाथों में सौंप दिया।