September 26, 2024

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संपादकीय माल्या के बदले सुर:

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भारत की कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए लंदन भाग गए विजय माल्या का यह कहना उनके बदले हुए सुर का सूचक है कि वह बैंकों का पैसा चुकाने को तैयार हैं। ऐसा लगता है कि हाल के घटनाक्रम से उन्हें यह समझ आ गया कि हथियार डालने में ही भलाई है। पिछले कुछ समय में एक ओर जहां भारत की विभिन्न् अदालतों ने उनके खिलाफ फैसले दिए, वहीं ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने भी यह आदेश सुनाया कि उन्हें भारतीय बैंकों का कानूनी खर्च वहन करना होगा। इन प्रतिकूल फैसलों के साथ-साथ वह भगोड़ों की संपत्ति जब्त करने संबंधी नए कानून की भी जद में आ गए थे। इसके अतिरिक्त भारत सरकार उन्हें ब्रिटेन से लाने के लिए हर संभव कदम भी उठा रही थी।

Vijay Mallya offers to settle Rs 14k-crore liabilities with banks, others -  The Financial Express

 

अच्छा होता कि वह समय रहते यह साधारण सी बात समझ जाते कि उन्होंने भारत छोड़कर ठीक नहीं किया। अब तो यही अधिक माना जाएगा कि आसन्न् संकट से बचने के लिए उन्होंने अपना रुख बदला है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि विजय माल्या की पेशकश पर बैंकों और साथ ही जांच एजेंसियों का रवैया क्या होगा, लेकिन भगोड़े कारोबारी की अपनी छवि के लिए एक बड़ी हद तक वह खुद जिम्मेदार हैं।

With family at The Oval, Vijay Mallya booed by fellow Indian spectators |  India News | Zee News

विजय माल्या जिस तरह लंदन में बैठकर भारतीय एजेंसियों और अदालती प्रक्रिया का उपहास उड़ाते रहे, उससे आम जनमानस की नजर में तो वह खलनायक बने ही, राजनीतिक दलों के लिए भी एक मुद्दा बन गए। जो कसर रह गई थी, वह तड़क-भड़क वाली उनकी जीवनशैली ने पूरी कर दी। लंदन में शाही अंदाज वाली उनकी जीवनशैली से आम भारतीयों को यही लगा कि वह कर्ज लेकर घी पीने वाली उक्ति चरितार्थ कर रहे हैं।

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विजय माल्या की यह शिकायत एक हद तक सही है कि वह दीवालिया लोगों के प्रतीक और पर्याय बन गए, लेकिन ऐसा इसलिए अधिक हुआ कि वह बैंकों की कानूनी कार्रवाई का सामना करते-करते एक दिन अचानक गुपचुप रूप से देश से बाहर चले गए। वह अपने खिलाफ लगे आरोपों से इनकार कर सकते हैं, लेकिन अब तो इसे अदालतें ही तय करेंगी कि वह सही हैं |

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या फिर बैंक एवं जांच एजेंसियां अगर वह देश नहीं छोड़ते तो जैसे कर्ज लौटाने में अक्षम अन्य कारोबारियों के साथ व्यवहार हो रहा है, वैसे ही उनके भी साथ होता। चूंकि वह देश छोड़कर चले गए और ऐसे संकेत देने लगे कि अब कभी नहीं लौटने वाले, इसलिए विपक्षी दलों को भी सरकार की घेराबंदी करने का मसाला मिल गया।

Demystifying Vijay Mallya Scam | Vijay Mallya Case Study - Trade Brains

कायदे से कर्ज लौटाने में असमर्थ हर कारोबारी को धोखेबाज या घोटालेबाज नहीं करार दिया जा सकता, क्योंकि कई बार कारोबार जगत की प्रतिकूल परिस्थितियां या नीतिगत जटिलता अथवा दूरदर्शिता का अभाव उन्हें संकट के घेरे में खड़ा कर देता है। यह किसी से छिपा नहीं कि संप्रग सरकार के समय कई उद्यमी इसलिए संकट से दो-चार हुए, क्योंकि शासनतंत्र नीतिगत पंगुता का शिकार हो गया था। शायद ही कोई इसका अनुमान लगा पाया हो कि संप्रग सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में उद्योग-व्यापार जगत को निराश-हताश करने का काम करेगी, लेकिन ऐसा ही हुआ। विजय माल्या कुछ भी कहें, इसमें संदेह नहीं कि लंदन भागकर उन्होंने अपनी मुसीबत ही बढ़ाई।

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