September 20, 2024

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अमेरिका Vs चीन: सांसद ने खुफिया एजेंसियों को लेकर किया सनसनीखेज खुलासा

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अमेरिका चीन के चीन डिस्प्यूट बीच जारी तनातनी के बीच अमेरिकी संसद की खुफिया मामलों की समिति हाउस इंटेलिजेंस समिति ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है|

Blog | Rozana Bhaskar | News The Power of Informationअमेरिका चीन के बीच जारी तनातनी के बीच अमेरिकी संसद की खुफिया मामलों की समिति न एक सनसनीखेज खुलासा किया है| समिति के प्रमुख एडम स्किफने कहा है| कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां चीन के मुकाबले के लिए तैयार नहीं हैं.

विदेशी मामलों की एक मैगजीन में छपे लेख में एडम स्किफ ने कहा है कि हमारी खुफिया एजेंसियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के प्रभाव का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं. स्किफ कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद हैं. उनका यह लेख एक तरह से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हमला है, जो दावा करते आये हैं कि अमेरिका हर मामले में चीन से मुकाबले के लिए तैयार है.

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खुफिया मामलों की समिति के प्रमुख ने कहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां लंबे समय की प्रभावी गतिविधियों के लिए तैयार नहीं हैं और हमें यह बात स्वीकारनी होगी. उन्होंने लिखा है, ‘संसद की खुफिया मामलों की समिति ने दो साल तक अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के कामकाज का अध्ययन किया. हमने देखा कि उन्होंने किस प्रकार चीनी गतिविधियों पर नजर रखी और इस बारे में सांसदों को अवगत कराया|

उन्होंने आगे कहा कि दो साल में समिति ने हजारों घंटे खुफिया अधिकारियों से बातचीत की गोपनीय दस्तावेजों और गोपनीय रिपोर्टों की समीक्षा की, लेकिन निष्कर्ष परेशान करने वाला है. सच्चाई यह है कि हमारी खुफिया एजेंसियां लंबे समय की प्रभावी गतिविधियों के लिए तैयार नहीं हैं. स्किफ के मुताबिक, अमेरिका के पास विश्वसनीय संसाधनों और संगठन का अभाव है, जो चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए बेहद जरूरी है. भविष्य में चीन से मुकाबले के लिए हमारी तैयारियां कमजोर हैं. हमें खुफिया मामलों में अपनी विशेषज्ञता बढ़ानी होगी.

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उन्होंने अपने लेख में चीन के शिनजियांग प्रांत में वीगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार का भी जिक्र किया है. एडम स्किफ ने कहा है कि चीन में वीगर मुस्लिमों को तमाम प्रतिबंधों के साथ रखा जा रहा है. दस लाख से ज्यादा अल्पसंख्यक शिविरों में नजरबंद हैं. चीन की कम्युनिस्ट सरकार वीगर संस्कृति को खत्म करने पर आमादा है. यह 21 वीं सदी के सबसे बड़े मानवाधिकार उल्लंघन का मामला है.

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