अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना पर लग रहे हैं गंभीर आरोप:-
1 min readभारत के अगले मुख्य न्यायधीश एन. वी. रमना पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने से लेकर राजनीतिक साजिश रचने और चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश करने के आरोप लग रहे हैं।
एस. ए. बोबडे को चिट्ठी
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस जगनमोहन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे को चिट्ठी लिख कर जस्टिस एन. वी. रमना के ख़िलाफ़ शिकायतें की हैं।
जगनमोहन रेड्डी के मुख्य सलाहकार अजेय कोल्लम ने शनिवार को हैदराबाद में यह चिट्ठी सार्वजनिक कर दी।
आठ पेज के इस ख़त में जगनमोहन रेड्डी ने लिखा है कि जस्टिस रमना आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की बैठकों और रोस्टर को प्रभावित कर रहे हैं। वे अमरावती भूमि घोटाले से जुड़े मामले को रोस्टर में कुछ चुनिंदा जजों को ही रख रहे हैं और इस तरह न्याय प्रशासन को प्रभावित कर रहे हैं। चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि इन भूमि घोटालों में जस्टिस रमना की बेटियों के भी नाम हैं।
रेड्डी यहीं नहीं रुके। उन्होंने जस्टिस रमना पर न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने चिट्ठी में लिखा है|
पूर्व एडवोकेट जनरल पर एफ़आईआर
जगनमोहन रेड्डी ने यह भी लिखा है कि पूर्व एडवोकेट जनरल दम्मलपति श्रीनिवास पर ज़मीन के लेनदेन को लेकर जाँच का आदेश दिया गया था, एंटी करप्शन ब्यूरो ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने को कहा था। लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि तेलुगु देशम पार्टी से जुड़े मामले कुछ ख़ास जजों को ही सौंप दिए जाते हैं।
‘डेकन क्रोनिकल’ के अनुसार, एंटी करप्शन ब्यूरो ने श्रीनिवास समेत 12 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की थी। उन लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 420 और प्रीवेन्शन ऑफ करप्शन एक्ट, 1988 के सब-सेक्शन 13 (2) और 13 (1) के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है।
बता दें कि अमरावती में ज़मीन खरीदने के मुद्दे पर श्रीनिवास के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी। हाई कोर्ट ने 15 सितंबर को आदेश जारी कर इस एफ़आईआर के डिटेल्स मीडिया को देने पर रोक लगा दी थी।
मामला क्या है?
जगनमोहन रेड्डी ने सत्ता संभालने के बाद अमरावती में भूमि घोटाले का आरोप लगाते हुए चंद्रबाबू नायडू के समय दिए गए सभी ठेकों की जाँच का आदेश दे दिया। उसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने कई मामले दर्ज किए।
आंध्र प्रदेश के स्थानीय अख़बार ‘साक्षी समाचार’ के अनुसार, अमरावती को राजधानी बनाने की घोषणा से पहले ही तेलगु देशम पार्टी के कई नेताओं और मशहूर हस्तियों ने लगभग 4,075 एकड़ ज़मीन अमरावती में खरीद ली। इनमें 900 एकड़ ज़मीन दलितों से ज़बरन खरीदी की गई।
चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को राजधानी बनाए जाने की घोषणा 3 सितंबर, 2015 को की थी। इससे पहले 1 जून, 2014 से 31 दिसंबर, 2014 तक ज़मीन खरीदी गई। शुरुआती जाँच में 1977 भूमि अधिनियम और 1989 एससी एसटी अधिकार अधिनियम का उल्लंघन किये जाने का खुलासा हुआ है। इतना ही नहीं सरकारी जमीनों के रिकॉर्ड में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं की पहचान की गई। लैंड पूलिंग योजना के रिकॉर्ड में भी छेड़छाड़ की गई है।
रेड्डी ने यह भी आरोप लगाया है कि जस्टिस रमना के राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और जगनमोहन रेड्डी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चंद्रबाबू नायडू से नज़दीकी रिश्ते हैं और वह उनके साथ मिल कर आंध्र प्रदेश की चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे हैं।
निशाने पर जज?
बीते दिनों जस्टिस रमना ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर बानुमति की एक किताब के लोकार्पण समारोह में जजों की आलोचना पर अपनी राय रखी थी। उन्होंने कहा था, ‘जज स्वयं पर संयम रखते हैं और अपने बचाव में भी सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहते, जिस वजह से उन्हें आसान लक्ष्य समझा जाता है, जबकि जज सोशल मीडिया पोस्ट और मसालेदार गप्पबाजी के शिकार हो जाते हैं।’
जस्टिस रमना पर आरोप ऐसे समय लग रहे हैं जब सुप्रीम कोर्ट ख़ुद विवादों में है। कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टि एस. ए. बोबडे पर की गई टिप्पणी को लेकर विवाद हुआ था और मशहूर वकील प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना का आरोप लगा था, उन्हें दोषी पाया गया था और उन्हें एक रुपया ज़ुर्माना हुआ था।
विवाद में न्यायपालिका
इस पर बार सोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने गहरी चिंता जताई थी। उसने कहा था कि जैसे यह अवमानना कार्रवाई की गई है उससे संस्था की प्रतिष्ठा बने रहने से ज़्यादा नुक़सान पहुँचने की संभावना है। इसने कहा था कि कुछ ट्वीट से सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को नुक़सान नहीं पहुँचाया जा सकता है। इससे पहले 1500 से ज़्यादा वकीलों ने भी प्रशांत भूषण के समर्थन में बयान जारी किया था।
न्यायपालिका ने एक बयान में कहा था, उसमें कहा गया है, ‘न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों व न्यायिक आचरण से संबंधित संस्थागत और संरचनात्मक मामलों पर टिप्पणी करना सामान्य रूप से न्याय प्रशासन और एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर भी वकीलों की ड्यूटी है।’ प्रशांत भूषण ने एसोसिएशन के इस बयान को ट्वीट किया है।