भगवान ओंकारेश्वर की नगरी में नहीं होता रावण का दहन ऐसा क्यू आइये जानते है :-
1 min readदेशभर में दशहरा रावण दहन के साथ मनेगा, वहीं तीर्थ नगरी ओकारेश्वर में दशहरा उत्साह से मनेगा लेकिन भगवान भोलेनाथ के परम भक्त रावण का पुतला दहन नहीं होगा। परंपरा अनुसार भगवान ओंकारेंश्वर श्रद्धालुओं के आशीर्वाद देने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। इतना ही नही तीर्थ नगरी के आसपास 10 किलोमीटर क्षेत्र में भी इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। प्राचीनकाल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह क्षेत्रवासी बरसों से कर रहे हैं। देश के 12 और मध्य प्रदेश के 2 ज्योतिर्लिंगों में शामिल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग धार्मिक पर्यटन नगरी के साथ ही इसका पौराणिक महत्व भी है।
ओंकारेश्वर के पंडा संघ अध्यक्ष पंडित नवल किशोर शर्मा का कहना कि रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था, इस कारण रावण के साथ ही यहां कुंभकरण-मेघनाद के पुतले भी नहीं जलाएं जाते। यह परंपरा क्षेत्र में प्राचीन समय से चली आ रही है। इसे सभी लोग निभा रहे है।
ओंकारेश्वर मंदिर के आशीष दीक्षित ने बताया कि दशमी पर शाम में मंदिर परिसर में पूजापाठ व आरती के बाद ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की सवारी नगर भृमण करेगी। जो शिवपुरी के मुख्य बाजार से होती हुई खेड़ापति हनुमान मंदिर पहुंचेगी, जहां अस्तरे के पेड़ की पूजा के बाद राज परिवार के सदस्यों के साथ नगर की जनता राजमहल जाएंगे। इसके बाद नगर में दशहरा पर्व मनाया जाएगा। पंडित डंकेश्वर दीक्षित का कहना है कि करीब सात वर्ष पहले परंपरा के विरुद्ध शिवकोठी में कुछ युवाओं द्वारा रावण दहन करने से यहां विवाद की स्थिति बन गई थी।
वर्ष 2013 में समीपस्थ ग्राम शिवकोठी में युवाओं ने रावण के पुतले का दहन किया। इसे लेकर गांव में विवाद हो गया। गांव में दो गुट हो गए थे। इसके बाद से कभी गांव में रावण दहन नहीं हुआ। इसकी की वजह बताई जाती है। रावण शिव भक्त होने तथा इस क्षेत्र पर भील राजाओं का अधिपत्य रहना भी एक कारण माना जाता है। कुछ आदिवासी समुदाय भी रावण को अपना आराध्य मानकर रावण दहन नहीं करता है।