शारीरिक दूरी के पालन के साथ निजी कालेजों से भी दूर हुए विद्यार्थी, खाली पड़ी सीटें यह है करोनामहमारी का डर :-
1 min readकोरोनाकाल के असर से शारीरिक दूरी का पालन करते-करते विद्यार्थी इस बार निजी कालेजों से भी दूर होते दिख रहे हैं। महामारी के प्रभाव में शासकीय कालेजों की स्थिति तो मजबूत हो गई, पर कई निजी संस्थाओं के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। शासकीय संस्थाओं में जहां मात्र 22.09 प्रतिशत सीटें ही भरने को शेष हैं, निजी कालेजों में अब भी 63.10 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हैं।
पिछले 80 दिन से चल रही प्रवेश की प्रक्रिया में ज्यादातर विद्यार्थियों ने शहर की निजी संस्थाओं की जगह इस बार जिला मुख्यालय से लेकर अपने गांव या उप नगर के नजदीक संचालित शासकीय कालेजों को ही पसंद किया है। बीते वर्षों की रिपोर्ट देखें तो सामान्य स्थिति में एक से डेढ़ माह की प्रवेश प्रक्रिया से ही निजी कालेजों में स्नातक प्रथम वर्ष की सीटें भर जाती थी और बहुत कम सीटें खाली रहती। शैक्षणिक सत्र 2020-21 में ढ़ाई माह बाद भी 63.10 फीसदी सीटें खाली पड़ी हैं। इस बार छात्र-छात्राओं ने निजी की बजाय शासकीय कालेजों में पढ़ने अधिक रूचि दिखाई है।
उच्च शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देश आने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर से संबद्ध जिले के 18 में 17 कालेजों में प्रवेश के लिए 29 अक्टूबर तक अंतिम अवसर दिया गया है। पूर्व की प्रक्रिया में दाखिला नहीं ले पाने वाले विद्यार्थियों के लिए अब केवल पांच दिन शेष रह गए हैं। इस अवधि में अगर वे प्रवेश नहीं ले पाते हैं तो संभवत: अब विश्वविद्यालय उन्हें अवसर नहीं देने वाली है। अगर अब भी अपेक्षा के अनुरूप प्रवेश न हुआ, तो शासकीय संस्थाओं को कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला। इसके विपरीत निजी कालेजों का मैनेजमेंट इस बार बुरी तरह डांवाडोल हो सकता है, जहां अब भी बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं।
ढाई माह की लंबी प्रक्रिया के बाद भी जिले में स्नातक प्रथम वर्ष में बीए, बी-काम, बीएससी गणित व बीएससी बायो संकाय में सर्वाधिक सीटें निजी कालेजों में खाली रह गई हैं। चारों संकाय में सात निजी कालेजों में 1450 सीटों का आवंटन है, जिसमें से अब तक 535 सीटों पर ही दाखिला हो सका है। यूं कहें तो महज 36.89 प्रतिशत सीटों पर ही विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है, जबकि 10 शासकीय कालेजों की इन चार संकायों के लिए 3910 सीटों का आवंटन है, जिसमें 3046 सीट भर चुकी हैं। खाली पड़ी 864 सीट पर छात्रों की प्रतीक्षा जारी है।
शासकीय संस्थाओं में नवीन कालेज जटगा को छोड़ कर शेष सभी में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या काफी बेहतर है। इस सत्र में शासकीय कालेजों में मात्र 22.09 फीसदी सीटें ही खाली रह गई हैं। शहर व उपनगरों के कई बड़े शासकीय कालेजों में तो एक भी सीट नहीं बची हैं। जिले में अटल विश्वविद्यालय से संबद्ध 10 शासकीय व सात निजी कालेज हैं, जिनमें प्रवेश की अनुमति है और प्रवेश की प्रक्रिया अब भी जारी है। अब तक की स्थिति में प्रवेश प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम होेने से निजी कालेजों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
जिले में कुछ ऐसे निजी कालेज हैं, जिन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से कोई ग्रांट नहीं मिलता। इसके बाद भी वे अपनी संस्था में शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक स्टाफ को वेतन देने के साथ कालेज भवन व उपलब्ध संसाधनों को मेंटेन रखने विद्यार्थियों से मिलने वाली फीस पर निर्भर रहते हैं। स्नातक प्रथम वर्ष में सीटों के आधार पर जिस तरह से छात्रों ने रुचि ली है, अगर यह आने वाले सत्रों में भी बनी रही तो ऐसे कालेज बंद होने होने की स्थिति में पहुंच जाएंगे। इनमें कुछ ऐसे कालेज भी हैं, जहां अब तक एक भी सीट पर प्रवेश नहीं हो सका है।