September 22, 2024

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इस बार नरक चतुर्दशी पर शुभ फल देने वाला विशेष योग :-

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कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी “नरक-चतुर्दशी” कहलाती है।दो विभिन्न मान्यताओं के अनुसार चंद्रोदयव्यापिनी अथवा अरुणोदयव्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन “नरक-चतुर्दशी” मनाई जाती है।इस दिन सूर्योदय से पहले चंद्रोदय होने पर अथवा अरुणोदय से पूर्व प्रत्यूषकाल में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। यद्यपि कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी इस तिथि विशेष को शरीर मे तेल लगाकर (तैलाभ्यंग) स्नान करना चाहिए। जिस दिन अरुणोदयकाल या चंद्रोदय काल के समय चतुर्दशी हो,उसी दिन तैलाभ्यंग करना चाहिए। इस वर्ष 14 नवंबर 2020,शनिवार को चंद्रोदय व्यापिनी एवं पूर्व अरुणोदयाव्यापिणी चतुर्दशी होने के कारण इसी दिन नरक-चतुर्दशी मनाई जाएगी।इस दिन चतुर्दशी तिथि अपराह्न 2:18 बजे तक रहेगी तदोपरांत अमावस्या आरम्भ हो जाएगी।

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इस वर्ष 14 नवंबर 2020,शनिवार को स्वाति नक्षत्र एवं आयुष्मान योग एवं सौभाग्य योग में छोटी दीपावली मनाना अति शुभ रहेगा। स्वाति नक्षत्र जोकि शुभ फल देने वाला माना जाता है और उसमें आयुष्मान योग एवम सौभाग्य योग का होना अति शुभ फलदायक है। अत: इन शुभ योगो में पूजा इस दिन चन्द्रमा तुला राशि में रहेंगे। इस योग का रूप चतुर्दशी के दिन होना अति शुभ रहेगा।इस दिन के प्रमुख देव कार्य निम्न है

1. रूप चतुर्दशी का स्नान- प्रत्यूष काल में।
2. यम तर्पण – प्रात: काल 10:41 बजे से दोपहर 12:31 बजे तक
3.. यमराज के निमित्त दीपदान – प्रदोष काल में सांय 05:33 बजे से 06:48 बजे तक।
4. दीप माला प्रज्वलन- सांय काल 07:07 बजे से रात्रि 08:46 बजे तक

1. रूप चतुर्दशी का स्नान
इसे रूप निखारने का पर्व बताया गया है। इस दिन प्रत्यूष काल में स्नान आदि करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नही करना पड़ता है। इस दिन प्रात: स्नान का विशिष्ट महत्व बताया गया है। ब्रह्म मुहुर्त में इस तिथि में स्नान करने से शरीर में दिव्य शक्ति आती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है। वह यमलोक को नहीं जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के पश्चात स्नान करता है। उसके पिछले 1 वर्ष के सभी पूर्ण कार्य समाप्त हो जाते है। इस दिन स्नान से पूर्व शरीर पर तिल्ली के तेल से मालिश करनी चाहिए। यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित है, किन्तु कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी के दिन तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी, जल में गंगा जल का निवास होता है। इस दिन तेल लगाने के उपरान्त उबटन से स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से जहां आध्यात्मिक लाभ तो मिलता ही है वहीं स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है तथा शरीर में स्फूर्ति आति है। स्नान से पूर्व वरूण देवता का स्मरण करके स्नान के जल में हल्दी, कुमकुम डालकर स्नान करना चाहिए स्नान के बीच में शरीर पर अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा तुंबी (लौंकी का टुकड़ा) और अपामार्ग (आठ अंगूल लम्बी लकड़ी) इन दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमायें, इससे नरक भय दूर होता है। घुमाते समय निम्न मंत्र पढ़े।
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टदलान्वितम् हर पापमपामार्ग भ्राम्यप्राण: पुन: पुन:।।
स्नान के उपरान्त तुंबी तथा अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए।
2. यम तर्पण
स्नान के पश्चात शुद्ध वस्त्र पहनकर तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर निम्न मंत्र से प्र्रत्येक मार्ग से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजली देना चाहिए। यह यम तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते है।
1.ॐ यमाय: नम:* 2. ॐ धर्म राजाय नम: 3. ॐ मृत्यवे: नम:
4. ॐ अन्तकाय नमः 5. ॐ वैवस्वताय नमः 6. ॐ कालाय नमः 7.ॐ सर्वभूतक्षय नमः 8.ॐ ऑदम्बराय नमः 9.ॐ दधनाय नमः
10. ॐ नीलाय नम: 11. ॐ परमेष्ठिने नम: 12. ॐ वृकोदराय नम:
13. ॐ चित्राय नम: 14. ॐ चित्रगुप्ताय नम:
चतुर्दशी होने के कारण यम को 14 नामों से तर्पण कराया जाता है।

3. यमराज के निमित्त दीप दान
नरकदोष से मुक्त के लिए सांयकाल चौमुखा दीपक जलाकर मुख्य द्वार के सामने रखा जात है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार प्रदोषकाल में ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के मंदिर में, मठो, अस्त्रागारो, चैत्रों, सभाभवनों, नदियों, उघानों, कूपो, राजपथो, भैरव के मंदिर में आदि सभी जगह दीप दान करना चाहिए। इस दिन देवताओं का पूजन कर दीपदान करना चाहिए। मंदिर के गुपत गृहों, रसोईघर, स्नानघर, देव वृक्षों के नीचे, सभाभवन, नदियों के किनारे, चारदीवारी, बगीचे, बावली, गली-कूचे, गौशाला आदि प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाना चाहिए। यमराज के उद्देश्य से त्रयोदशी से अमावस्या तक दीप जलाने चाहिए। दीपदान के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
दत्तो दीप श्रतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।* चतुर्वर्तिसमायुक्त: सर्वपापापनुत्तये।।

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