रिवर फ्रंट के चलते गंदा नाला बन कर रह गई गोमती, शाम-ए-अवध की रंगत हुई गायब
1 min readकभी गोमती लखनऊ के बाशिंदों के जीवन-जगत का मुख्य आधार हुआ करती थी। सूर्य की अस्ताचलगामी किरणों इस नदी की जलनिधि से परावर्तित होकर पूरे शहर को सुनहरे लाल रंग से सराबोर कर देती थीं। लखनऊ में गोमती के बहाव की दिशा पूर्व-पश्चिम है सो डूबते सूरज की किरणों का सीधा परावर्तन होता है। लेकिन रिवर फ्रंट के नाम पर जैसे ही नदी को बांधा, गोमती गंदा नाला बन कर रह गई है। नदी में पानी कम और काई अधिक दिखाई देती है। सूरज की रोशनी वही है, उसके अस्त होने की दिशा भी वही है, लेकिन शाम-ए-अवध का सुनहरा सुरूर नदारद है।
फिर इसमें गैहाई नाम की छोटी सी नदी मिलती है और एक छिछला जल-मार्ग बन जाता है। उद्गम से 56 किमी का सफर तय करने के बाद जब इसमें जोकनई नदी मिलती है तब इसका पूरा रूप निखर आता है। शाहजहांपुर और खीरी होकर यह आगे बढ़ती है। मुहमदी से आगे इसका स्वरूप बदल जाता है और इसका पाट 30 से 60 मीटर चौड़ा हो जाता है। जब यह नदी लखनऊ पहुंचती है तो इसके तट 20 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं। फिर यह बाराबंकी, सुल्तानपुर और जौनपुर जिलों से गुजरती हुई जौनपुर के करीब सई नदी में मिल जाती है
यहां गोमती की एक प्रमुख सहायक नदी सरिया इसमें आकर मिलती है। सरिया के पानी में सीतापुर जिले में स्थित शक्कर और शराब के कारखानों का प्रदूषित स्त्रव होता है। जैसे-तैसे गोमती लखनऊ तक शुद्ध हो पाती है, लेकिन इस राजधानी शहर में पहुंचते ही यह नाले के स्वरूप में आ जाती है। करीब 28 लाख आबादी वाले इस शहर का लगभग 1,800 टन घरेलू कचरा और 33 करोड़ लीटर गंदा पानी हर रोज गोमती में घुलता है। लखनऊ में बीकेटी से इंदिरा नहर तक कुल 28 नाले नदी में गिरते हैं।
लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च करके महानगर के साढ़े आठ किलोमीटर में गोमती को संवारने की योजना ने गोमती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। गोमती किसी ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है, इसका उद्गम व संवर्धन भूजल से ही होता है। रिवर फ्रंट के नाम पर गोमती की धारा को संकरा कर दिया गया। इसके दोनों तरफ कंक्रीट की दीवार बना दी गई। जाहिर है कि इस दीवार को टिकाकर रखने के लिए गहराई में भी दीवार उतारी गई होगी।