डर के बीच जम्मू-कश्मीर में 13000 से ज्यादा खाली पड़े पंच-सरपंचों के होंगे चुनाव:-
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The Union Home Minister, Shri Amit Shah meeting a delegation from Jammu & Kashmir’s Apni Party led by Shri Altaf Bukhari, in New Delhi on March 15, 2020.
जम्मू। पंचायत प्रतिनिधियों पर बढ़ते खतरे के बीच चुनाव आयोग ने उन पंचायत हल्कों मे पंचों व सारपंचों के रिक्त पड़े पदों के लिए उप चुनाव करवाने की घोषणा की है, जो वर्ष 2018 में आतंकी धमकी के कारण भरे नहीं जा सके थे या फिर चुने गए प्रतिनिधियों ने आतंकी धमकियों के बाद त्यागपत्र दे दिए थे।
प्रदेश में पंचों-सरपंचों के कुल 37 हजार 882 पद हैं। इनमें 4290 सरपंच व 33 हजार 592 पंच के हैं। दिसंबर 2018 में आखिरी बार चुनाव हुए तो 12 हजार 209 पदों पर आतंकी खतरे के कारण मतदान ही नहीं हो पाया। अब चुनाव आयोग ने 12 हजार 168 पंचों व 1089 सरंपचों को चुनने के लिए चुनावों की घोषणा करते हुए कहा है कि एकाध दिनों में वह चुनाव की तारीखों का एलान कर देगा।इस घोषणा के बाद पंचायत हल्कों में गम और खुशी का माहौल जरूर है। कारण आतंकी खतरा अभी तक टला नहीं है। प्रदेश में एक बार 25 सालों तक पंचायत चुनाव जरूर टाले गए थे। दिसंबर 2018 में अंतिम बार चुनाव हुए थे। पर पंचायत प्रतिनिधियों की राह आसान नहीं रही। उन्हें हमेशा खतरा महसूस होता रहा।
खतरा कितना था इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 के बाद 22 पंचों-सरंपचों को मौत के घाट उतारा जा चुका है, उनके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग पर पुलिस का कहना था कि इतने लोगों को सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती। हालांकि मात्र 60 को मुहैया करवाई गई, लेकिन सुरक्षा किसी को भी संतुष्ट नहीं कर पाई।
इस साल पंचायत व निकाय प्रतिनिधियों को बीमा कवर देने का फैसला उस समय लिया गया जब आतंकियों ने जून में कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी थी। इसके उपरांत पंचों व सरपंचों द्वारा सामूहिक त्यागपत्र की दी गई धमकी का नतीजा था कि प्रशासन बीमा कवर व सुरक्षा मुहैया करवाने को राजी हो गया।
30 सालों में 1000 से ज्यादा राजनीतिज्ञों की हत्या : प्रदेश में 30 सालों के आतंकवाद के इतिहास में एक हजार से अधिक राजनीतिज्ञों की हत्याएं आतंकी कर चुके हैं। इनमें से अधिकतर के पास सुरक्षा भी थी। फिर भी आतंकी उन्हें मारने में कामयाब रहे थे। ऐसे में सुरक्षा क्या उनकी जान बचा पाएगी जो इसकी मांग कर रहे हैं, के प्रति एक सरपंच का कहना था कि फिर भी बचने की आस बनी रहती है।
अभी तक करीब 2000 पंच-सरपंच आतंकी धमकियों के कारण त्यागपत्र भी दे चुके हैं। उन्होंने अपने त्यागपत्रों की घोषणा अखबारों में इश्तहार के माध्यम से की थी। दरअसल दूरदराज के आतंकवादग्रस्त इलाकों में रहने वाले राजनीतिज्ञों को अक्सर कश्मीर में पिछले 30 सालों में झुकना ही पड़ा है। और अब एक बार फिर पंचों और सरपंचों को लोकतंत्र का स्तंभ बना खतरे में झौंक दिया गया है।