May 4, 2024

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सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित आज जाने शिव जी के कुछ रहस्यों के बारे में। ..

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सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है. ऐसे में कहा जाता है कि अगर सोमवार को भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामना पूरी होती है.

शिव सदा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए सोमवार को सुबह उठकर स्नान करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए.

ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से भोले भगवान की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान शिव से जुड़ीं कई ऐसी बातें हैं जो आप नहीं जानते होंगे. आइए आपको बताते हैं शिव जी के ऐसे ही 5 रहस्यों के बारे में.

भगवान शिव मां काली के चरणों के नीचे भी मुस्कुरा रहे थे. भगवान शिव क्रोध और उग्रता के प्रतीक हैं फिर भी वह सबसे उदार रूप में है. ऐसा क्यों? आइए बताते हैं इसके पीछे का रहस्य. एक बार काली मां बहुत ज्यादा क्रुद्ध अवस्था में थीं.

कोई भी देव, राक्षस और मानव उन्हें रोकने में समर्थ नहीं हो पा रहा था. तब सभी ने मां काली को रोकने के लिए सामूहिक रूप से भगवान शिव का स्मरण किया. उस समय महाशक्ति जहां-जहां कदम रख रहीं थीं,

वहां विनाश होना निश्चित था. तब भगवान शिव ने यह अनुभव किया कि वह महाशक्ति को रोकने में समर्थ नहीं हैं. इसके बाद भगवान शिव ने भावनात्मक रास्ता चुना और उन्हें रोकने पहुंच गएं.

भोलेनाथ, मां काली के रास्ते में लेट गए. जब मां काली वहां पहुंचीं तो उऩ्होंने ध्यान नहीं दिया कि भगवान शिव वहां लेटे हुए हैं और उन्होंने शिव की छाती पर पैर रख दिया. अभी तक महाशक्ति ने जहां-जहां कदम रखा था,

वहां सब कुछ खत्म हो चुका था. लेकिन यहां अपवाद हुआ. मां काली ने जैसे ही देखा कि भगवान शिव की छाती पर उनका पैर है, उनका गुस्सा शांत हो गया और वह पश्चाताप करने लगीं.

क्या आपको पता है कि भगवान शिव ने मां पार्वती की परीक्षा ली थी. कहते हैं कि पार्वती मां से विवाह करने से पहले भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने की सोची थी. भोलेनाथ ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और पार्वती जी के पास पहुंचे.

उन्होंने पार्वती मां से पूछा कि वह भगवान शिव जैसे भिखारी से विवाह क्यों करना चाहती हैं जिसके पास कुछ नहीं है. यह सुनकर पार्वती मां क्रोधित हो गईं. उन्होंने कहा कि वह शिव के सिवा किसी और से विवाह नहीं करेंगी. उनके इस उत्तर से भगवान शिव प्रसन्न हो गए. वह अपने असली रूप में सामने आ गए और पार्वती से विवाह करने को राजी हुए.

भगवान शिव पूरे शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं. शिवभक्त माथे पर भस्म का तिलक लगाते हैं. शिव पुराण में इस संबंध में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी मिलती है. एक संत था जो खूब तपस्या करके शक्तिशाली हो चुका था.

वह केवल फल और हरी पत्तियां खाता था इसलिए उनका नाम प्रनद पड़ गया था. अपनी तपस्या के जरिए उस साधु ने जंगल के सभी जीव-जंतुओं पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था. एक बार वह अपनी कुटिया की मरम्मत के लिए लकड़ी काट रहा था, तभी उनकी उंगली कट गई.

साधु ने देखा कि उंगली से खून बहने के बजाए पौधे का रस निकल रहा है. साधु को लगा कि वह इतना ज्यादा पवित्र हो चुका है कि उसके शरीर में खून नहीं बल्कि पौधों का रस भर चुका है. उसे उस बात की बहुत ज्यादा खुशी हुई और वह घमंड से भर गया.

अब साधु खुद को दुनिया का सबसे पवित्र शख्स मानने लगा. भगवान शिव ने जब यह देखा तो उन्होंने एक बूढ़े का रूप धारण किया और वहां पहुंचे. बूढ़े व्यक्ति के भेष में छिपे भगवान शिव ने साधु से पूछा कि वह इतना खुश क्यों है?

साधु ने वजह बता दी. शिव जी ने सारी बात जानकर उससे पूछा कि ये पौधों और फलों का रस ही तो है लेकिन जब पेड़-पौधे जल जाते हैं तो वह भी राख बन जाते हैं. अंत में केवल राख ही शेष रह जाती है.

बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण करे शिव ने तुरंत अपनी उंगली काटकर दिखाई और उससे राख निकली. साधु को एहसास हो गया कि उनके सामने स्वयं भगवान खड़े हैं. साधु ने अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा मांगा.

ऐसा कहा जाता है कि तब से ही भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लगाने लगे ताकि उनके भक्त इस बात को हमेशा याद रखें. शारीरिक सौंदर्य का अहंकार न करें बल्कि अंतिम सत्य को याद रखें.

भगवान विष्णु के हाथों में हमेशा सुदर्शन चक्र सुशोभित रहता है. पुराणों की मानें तो यह सुदर्शन चक्र भगवान शिव ने ही भगवान विष्णु को दिया था. एक बार भगवान विष्णु शिव की आराधना कर रहे थे. विष्णु देवता ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हजारों कमल बिछा रखे थे.

भगवान शिव यह देखना चाहते थे कि भगवान विष्णु की भक्ति में कितनी तत्परता है. इसलिए उन्होंने एक कमल उठा लिया. भगवान विष्णु सहस्त्रनाम लेते हुए शिवलिंग पर हर बार एक कमल का फूल चढ़ा रहे थे.

जब विष्णु 1000वां नाम ले रहे थे तो उन्होंने पाया कि शिवलिंग पर अर्पित करने के लिए कोई भी फूल शेष नहीं रह गया है. तब भगवान विष्णु ने अपनी आंख निकालकर शिव को अर्पित कर दी थी.

भगवान विष्णु को कमलनयन कहा गया है इसलिए कमल के फूल के बजाए उन्होंने अपना नेत्र अर्पित कर दिया. कहते हैं कि भगवान विष्णु की अटूट भक्ति देखकर शिव जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र भेंट किया था.

भगवान शिव के भक्तों के लिए अमरनाथ गुफा बहुत महत्वपूर्ण है. कहते हैं कि जब मां पार्वती ने भगवान शिव से अमरता का रहस्य बताने के लिए कहा था तो वह एक गुफा की ओर निकल गए. गुफा जाने के रास्ते में उन्होंने कई कार्य किए.

इसीलिए गुफा जाने का पूरा रास्ता चमत्कारिक माना जाता है. अमरकथा के रहस्य बताने के क्रम में भगवान ने अपने पुत्र और वाहन को निर्जन स्थानों पर छोड़ दिया. ये सभी स्थल तीर्थस्थल बन गए. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव गुफा तक पहलगाम से होते हुए पहुंचे थे.

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