December 20, 2024

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44 हज़ार 445 शपथ पत्र और PM मोदी को क्‍लीन चिट-

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Prime minister Narendra Modi speaks during an election rally in Mumbai, India, Friday, April 26, 2019. The ongoing general election is seen as a referendum on Modi's five-year rule. He has adopted a nationalist pitch in trying to win votes from the country's Hindu majority by projecting a tough stance against Pakistan, India's Muslim-majority neighbor and archrival. (AP Photo/Rajanish Kakade)

नागरिकता संशोधन बिल पर कई राजनीतिक पार्टियां दुष्प्रचार कर रही हैं. लेकिन इसके साथ ही एक 17 वर्ष पुराने दुष्प्रचार पर भी ब्रेक लग गया है. बुधवार को गुजरात के नानावटी-मेहता आयोग ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगे (2002 Gujarat Riots) मामलों में तत्कालीन गुजरात सरकार को क्लीन चिट दे दी है. आयोग ने माना है कि उन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी और उनके तीन मंत्रियों अशोक भट्ट, भरत बरोट और हरेन पांड्या का कोई रोल नहीं था.

Prime minister Narendra Modi speaks during an election rally in Mumbai, India, Friday, April 26, 2019. The ongoing general election is seen as a referendum on Modi’s five-year rule. He has adopted a nationalist pitch in trying to win votes from the country’s Hindu majority by projecting a tough stance against Pakistan, India’s Muslim-majority neighbor and archrival. (AP Photo/Rajanish Kakade)

आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं लेकिन क्लीन चिट पाने के लिए उन्हें भी देश की कानून व्यवस्था के सामने 17 वर्षों का लंबा इंतज़ार करना पड़ा है. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी मोदी ने इस आयोग के सामने अपना बयान दिया था. 11 दिसंबर को गुजरात विधानसभा में जस्टिस जीटी नानावटी और जस्टिस अक्षय मेहता आयोग की ढाई हज़ार पन्नों की जांच रिपोर्ट पेश की गई. इस दौरान गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने विधानसभा को बताया कि रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मोदी पर लगे सभी आरोप खारिज कर दिए गए हैं . इस आयोग का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद किया गया था. अब 17 वर्षों के बाद..इस मामले की अंतिम रिपोर्ट पूरे देश के सामने आ गई है.

1. इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी पर सबसे पहला आरोप था कि उन्होंने गोधरा के बाद गुजरात में मुसलमानों पर हुई हिंसा को सही ठहराने की कोशिश की थी. आयोग ने इस आरोप को गलत बताया है औऱ कहा कि इन दंगो में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई हाथ नहीं था.

2. दूसरा आरोप ये था कि दंगों के वक्त अहमदाबाद में सेना की तैनाती को लेकर तत्कालीन राज्य सरकार ने जानबूझकर देरी की थी. आयोग ने इस आरोप को भी गलत ठहराते हुए कहा कि राज्य सरकार ने कम वक्त में सेना को सभी ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध करा दी थीं .

3. तीसरा आरोप ये था कि नरेंद्र मोदी सबूत नष्ट करने के मकसद से साबरमती एक्सप्रेस का एस-6 कोच देखने गए थे और वो उनकी निजी यात्रा थी. जबकि जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट मे माना कि मोदी आधिकारिक यात्रा पर S-6 कोच को देखने गए थे और उनका मकसद सबूत नष्ट करने का नहीं था.

4. प्रधानमंत्री मोदी पर चौथे आरोप का आधार था…तत्कालीन डीजीपी R.B Shrikumar (आर बी श्री कुमार) का वो आरोप..जिसमें उन्होंने कहा था, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने..कई अफसरों को मौखिक रूप से गैरकानूनी आदेश दिए थे. लेकिन आर बी श्री कुमार इसे लेकर आयोग के सामने कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए. आयोग ने माना है कि आर बी श्री कुमार ने ये आरोप उन पर विभागीय कार्रवाई होने के डर से लगाए थे .

5. पांचवा आरोप ये था कि वर्ष 2002 के अप्रैल और मई महीने में भी गुजरात के कई ज़िलों में दंगे होते रहे..लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़िले के पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. इस वजह से लगातार हिंसा होती रही और इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग मारे गए . लेकिन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस आरोप को भी गलत बताया है. आयोग का कहना है कि हिंसा को रोकने में पुलिस इसलिए नाकामयाब हुई क्योंकि राज्य में पर्याप्त संख्या में पुलिस बल मौजूद नहीं था

आयोग को इस बात का भी कोई सबूत नहीं मिला है कि पुलिस ने जानबूझकर दंगे भड़कने दिए. आयोग ने पुलिस द्वारा दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई ना करने के आरोपों को भी गलत माना है. आयोग के मुताबिक जिन पुलिसकर्मियों ने अपनी ड्यूटी पर लापरवाही की थी..उनके खिलाफ राज्य सरकार ने कार्रवाई की थी. आयोग ने अपनी जांच में माना है कि पुलिस बल के पास पर्याप्त मात्रा में हथियार नहीं थे…जिसकी वजह कई इलाकों में हिंसा नहीं रोकी जा सकी .

6. छठा आरोप ये था कि तत्कालीन राज्य सरकार के कई मंत्री हिंसा भड़काने में शामिल थे. आयोग ने माना है कि गुजरात दंगा गोधरा कांड का परिणाम था. गोधरा की वजह से गुजरात में हिंदू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा काफी नाराज़ था और उनमें से कुछ लोग मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में शामिल भी थे. लेकिन आयोग को इस बात का भी कोई सबूत नहीं मिला हैं कि हिंसा भड़काने में गुजरात सरकार के किसी मंत्री का हाथ था.

इस रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाने वाले तीन प्रमुख अफसरों- आरबी श्रीकुमार,संजीव भट्ट और राहुल शर्मा की नकारात्‍मक भूमिका के सबूत मिले हैं. इससे पहले 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों को लेकर जो एसआईटी बनाई थी उसने भी गुलबर्ग सोसायटी मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी थी.

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