December 17, 2024

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अंतरिक्ष परी’ को देखने को टकटकी लगाए थे, तभी अनहोनी दे गई जिंदगी भर का गम

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एक फरवरी 2003। एक अंतरिक्ष परी अंतरिक्ष में ही रह गई। स्वागत में पलके बिछाए उसके जन्मभूमि के लोग आज भी इस दिन को नहीं भूल पा रहे हैं। काउंटडाउन चल रहा था। स्कूल में लाइव प्रसारण के जरिए सैकड़ों की तादाद में बच्चे और शिक्षक अपनी कल्पना को साकार होता देखना चाह रहे थे। तभी कुछ ऐसा हुआ कि हर किसी के आंखों में आंसू थे। कुछ तो खुद को संभाल नहीं पाए तो वहीं बैठ गए। इस दर्द भरे हादसे ने करनाल की कल्पना को छीन लिया। आज ही के दिन अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का शटलयान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था।

कुछ ही देर में मिली अनहोनी की सूचना

प्रसारण रुकने की वजह से सभी परेशान थे। हर कोई जानना चाहता था कि शटलयान आ गया, कल्पना का स्वागत कैसे हुआ। मीडिया से खबरें आईं कोलंबिया शटल यान के धरती की ओर आने की सूचना बंद हो गई। कुछ ही देर में यह पता चला कि शटल यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। यह सुनते ही लोगों की आंखें नम हो गई।

कुछ ही देर में मिली अनहोनी की सूचना

प्रसारण रुकने की वजह से सभी परेशान थे। हर कोई जानना चाहता था कि शटलयान आ गया, कल्पना का स्वागत कैसे हुआ। मीडिया से खबरें आईं कोलंबिया शटल यान के धरती की ओर आने की सूचना बंद हो गई। कुछ ही देर में यह पता चला कि शटल यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। यह सुनते ही लोगों की आंखें नम हो गई।

आज भी याद है वह शाम-राजन लांबा

टैगोर बाल निकेतन स्कूल के प्रिंसिपल डा. राजन लांबा ने कहा कि आज भी उन्हें वह शाम याद है, जब पूरा स्कूल कोलंबिया शटल यान के धरती पर आने का प्रसारण देख रहा था। जैसे ही शटल यान का संपर्क टूटा तो लाइव प्रसारण देख रहे लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई थी। सभी अंतरिक्ष यात्रियों के सकुशल धरती पर आने की दुआएं करने लगे। यह हादसा आज भी याद आता है तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। इस हादसे से पहले पूरा स्कूल खुशी में झूम रहा था। क्योंकि कल्पना चावला लगातार दूसरी बार अंतरिक्ष में सफल यात्रा डा. लांबा ने कहा कि कल्पना चावला के पिता बनारसी दास चावला से अक्सर उनके बारे में बातचीत हुई है। 

कल्पना ने अपने स्कूल को दी गुरु दक्षिणा

कल्पना चावला का अपने स्कूल से बेहद लगाव था और सफल अंतरिक्ष यात्री बनने के बाद भी उनका नाता अपने स्कूल से जुड़ा रहा था। नासा की ओर से हर वर्ष आयोजित किए जाने यूनाटेड स्पेस स्कूल प्रोग्राम में टैगोर बाल निकेतन स्कूल के बच्चे भाग लेने जाते हैं। कल्पना चावला के प्रयासों की वजह से ही यह संभव हो सका कि हर साल इस स्कूल के बच्चों का चयन इस प्रोग्राम के लिए होने लगा। 1998 से इस स्कूल के बच्चे नासा जाने लगे थे।

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